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________________ व्रत कथा कोष ऐसा सुनकर कनकमंजरी को बहुत प्रानन्द हुप्रा, सरोवर से उसने एक सहस्रदल कमल लेकर भगवान को चढ़ा दिया, प्रागे कालानुसार उसने इस व्रत को भी पाला, उसके कारण उसे गर्भ रहा और उसकी कोख से महान प्रभावशाली सनत्कुमार नाम का पुत्र उत्पन्न हया, कनकमंजरी कुछ दिनों के बाद मरकर देवी ज्वालामालिनी हुई है । इस प्रकार का कथन सुनकर राजा प्रजापति को बहुत प्रानन्द हुआ। भगवान कहने लगे कि और भी इस व्रत को किसने पाला सो सुन, इसी क्षेत्र में मधुरा नाम की नगरी में अरविन्द नाम का राजा देवश्री रानी के साथ में सुख से राज्य करता था। उस राजा के अशनिवेग नाम का राजकुमार था। एक दिन प्रातिकर नाम का दूसरे देश का राजा पाकर उस अशनि वेग राजकुमार को निद्रावस्था में ही (सोते हुए) उठाकर रथ में डालकर अपने नगर को ल गया और अपनी ६६ कन्याओं का विवाह अशनिवेग से कर दिया। और भी विद्याधर राजाओं ने अपनी कन्याओं का विवाह कर दिया। सब मिलाकर ८००० कन्याओं के साथ विवाह कर साम्राज्यपद का उपभोग करने लगा। एक बार नगर के उद्यान में महामुनिश्वर पधारे, ऐसा समाचार वनमालि से प्राप्त होते ही अशनिवेग राजा परिवार सहित नगरवासी प्रजा को लेकर उद्यान में गया, गुरुभक्ति करके नमस्कार किया, धर्मोपदेश सुनकर राजा ने प्रश्न किया कि गुरुदेव मंने पूर्वभव में ऐसा कौनसा पुण्य किया जिससे मुझ साम्राज्य पद प्राप्त हुआ ? तब मुनिराज कहने लगे कि हे राजन् ! तुमने पूर्व भव में शुक्रवार व्रत का पालन किया है, उसी व्रत का यह प्रभाव है। राजा सुनकर बहुत प्रभावित हुआ, और उसने पुनः उसी व्रत को ग्रहण किया और नगरी में प्राकर यथाविधि व्रत का पालन करने लगा, अन्त में उद्यापन किया, राजा मरकर स्वर्ग में देव हुआ। पुनः गणधर कहने लगे कि हे राजन् ! और भी एक कथा कहता हसो सुनो इसो भरत क्षेत्र में राजपुर नाम का नगर है, उस नगर में श्रीधर श्रेष्ठी अपनी भार्या श्रीधरी सहित रहता था, उनको शिवगामिनी नाम की एक कन्या उत्पन्न हई, कन्या के उत्पन्न होते ही सेठ-सेठानी आदि सर्व परिवार की मृत्यु हो गई । उस कन्या के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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