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________________ व्रत कथा कोष [ ६६१ की विधि पूर्वोक्त प्रकार ही समझना, यहां चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा यक्षयक्षि सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे । अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत, गुरु, यक्षयक्षि, क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं वृषभादि वर्धमानांत्य चतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा । पढ़े । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, सात प्रकार का नैवेद्य सात जगह चढ़ावे, एक महाअर्ध्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, ब्रह्मचर्यपूर्वक उपवास करे, धर्मध्यान से उपवास करे, दूसरे दिन पूजा कर दान देकर स्वयं पारणा करे, इसी क्रम से पाँच शुक्रवार व्रत करे, अंत में उद्यापन करे, चौबीस तीर्थंकर की अलग-अलग पूजा करके महाभिषेक करे, सात मुनिसंघों को प्राहारादि देवे । कथा इस व्रत को राजा श्रेणिक और रानी चेलना ने किया था, उसी की कथा सर्वथाकृत्य व्रत कथा आश्विन महिने के पहले रविवार को शुद्ध होकर मन्दिर में जाकर नमस्कार करे, फिर चन्द्रप्रभू की प्रतिमा यक्षयक्षी सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ग्रह चंद्रप्रभ तीर्थंकराय श्यामयक्ष ज्वालामालिनी यक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में अर्ध्य रखकर हाथ में लेते हुए, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल प्रारती उतारे, यथाशक्ति उपवासादि करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, दूसरे दिन पूजा करके पारणा करे, इस प्रकार पांच रविवार इस व्रत को उपरोक्त विधि से करें, अंत में उद्यापन करे, उस समय चन्द्रप्रभ तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे, चतुविध संघ को प्राहारादि देकर व्रत को पूर्ण करे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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