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व्रत कथा कोष
में कृषि कार्य; वणिज में व्यापार क्रय विक्रय आदि कार्य; विष्टि में उग्रकार्य; शकुनी में मंत्र तंत्र सिद्धि, औषध, निर्माण प्रादि; चतुष्पद में पशु खरीदना-बेचना पूजापाठ करना आदि; नाग में स्थिर कार्य एवं किस्तुघ्न में चित्र खींचना, नाचना, गाना आदि कार्य करना श्रेष्ठ माने गये हैं। विष्टि भद्रा समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य हैं।
वारों में रविवार, शनिवार, मंगलवार क र माने गये हैं। इनमें शुभ कार्य करना प्रायः त्याज्य है । मतान्तर से रविवार ग्रहण भी किया गया है । किन्तु मंगलवार और शनिवार को सर्वथा त्याज्य बताया गया है । शुक्रवार, गुरुवार और बुधवार समस्त शुभ कार्यों में ग्राह्य माने गये हैं, सोमवार को मध्यम बताया है। राज्याभिषेक, नौकरी, मंत्र सिद्धि, औषधनिर्माण, विद्यारम्भ, संग्राम, अलंकार निर्माण, शिल्प निर्माण, पुण्यकृत्य, उत्सव, याननिर्माण, सूतिका स्नान आदि कार्य रविवार को करने से ; कृषि, व्यापार, गान, चांदी-मोति का व्यापार, प्रतिष्ठा आदि कार्य सोमवार को करने से; क्र र कार्य, खान-खोदना, ऑपरेशन करना, सूतिका स्नान आदि काम मंगलवार को करने से ; अक्षरारम्भ, शिलान्यास, कर्णवेध, काव्य-निर्माण काव्य तर्क कला आदि का अध्ययन, व्यायाम करना, कुश्ती लडना आदि कार्य बुधवार को करने से; दीक्षारम्भ, विद्यारम्भ, औषध निर्माण प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, सीमन्तोन्नयन, पुंसवन, जातकर्म, विवाह, स्तनपान, सूतिका स्नान, भम्युपवेशन एवं अन्नप्राशन आदि मांगलिक कार्य गुरुवार को करने से ; विद्यारम्भ, कर्णवेध चूडाकरण, वाग्दान, विवाह, व्रतोपनयन, षोडशसंस्कार आदि कार्य शुक्रवार को करने से एवं गृहप्रवेश, दीक्षारम्भ तथा अन्य क्र र कार्य शनिवार को करने से सफल होते हैं ।
विशेष समाचार के लिए तो प्रत्येक कार्य के विहित मुहूर्त को ग्रहण करना • चाहिए । सामान्य से उपर्युक्त तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार सिद्धि का विचार
कर जो तिथि आदि जिस कार्य के लिए ग्राह्य हैं, उन्हीं में उस कार्य को करना चाहिए शुभ समय पर किया गया कार्य अधिक फल देता है। व्रत के लिए छह घटी प्रमाण तिथि न मानने वालों के दोष