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________________ वत कथा कोष -- ६८३ की प्रतिमा क्षयक्षि सहित स्थापन कर, पंचामृताभिषेक करे, प्रष्टद्रव्य से पूजा करे, जिनागम व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं चंद्रप्रभ तीर्थंकराय श्यामयक्ष ज्वालामालिनी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, उसी प्रकार ॐ ह्रीं अष्टांग योगधारक सप्तऋद्धि संपन्नाय गरणधर देवाय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से भी १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाय करे, यह व्रत कथा पढ़े, एक अर्घ्य लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढा देवे उस दिन उपवास करे, दूसरे दिन पूजाभिषेक दानादि करके स्वयं पारणा करे, तीन दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान से समय बितावे, इसी प्रकार आठ महिने तक पूजाक्रम करके अन्त में व्रत का उद्यापन करे, उस समय चंद्रप्रभ विधान करके महाभिषेक करे, आठ प्रकार का नैवेद्य चढ़ावे, आठ मुनि प्रायिकाओं को दानादि उपकरण देवे । कथा वासुपूज्य तीर्थंकर के काल में नरपति नाम का राजा दीक्षा धारण कर घोर तपश्चरण करने लगा, अन्त में समाधिमरण कर योग धारण करता हुआ व्रत के फल से अहमिन्द्र देव हुआ। वहां से चयकर इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में धर्मनाथ के काल में कौशल देश को अयोध्या नगरी में सुमित्र राजा के यहां मघवा होकर उत्पन्न हुम्रा, वह मघवा चक्रवति हुआ, वह चक्रवर्ति कुछ दिन राज्य कर दीक्षा धारण करके, योग व्रत को धारण करके घोर तपश्चरण करता हुआ अन्त में भ्रष्ट कर्मों को नासकर मोक्ष को गया । सहस्रनाम व्रत कथा चैत्र महिनादिक में कोई भी महिने के शुभ दिन में इस व्रत को प्रारम्भ करे, स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा सामग्री लेकर जिनमन्दिरजी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर प्रादिनाथ भगवान की मूर्ति स्थापन कर पंचामृत अभिषेक
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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