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प्रत कथा कोष
बुलाकर उससे पूछा तो उस नैमित्तिक ने बताया कि तुम्हारा कोई शत्रु उत्पन्न हुपा है । वह तुम्हारा नाश करेगा। यह सुन उन्होंने परीक्षा करने के लिये एक यंत्र तैयार किया। इधर उस सुभौम राजा की माता अपने पुत्र के साथ अपने घर पायी और सारा वृतान्त सुना । यह सुन उसने अपनी मां का सब दुःख निवारण किया।
___ एक दिन उस सुभौम राज-पुत्र का अतिशय रूप देखकर उस राजा के परिचारक उस आश्रम में गुप्त रीति से जाकर देखने लगे और अपने राजा परशुराम व पतिराम को सब बात सुनाई तब बहुत सेना लेकर हाथी पर बैठकर जा रहे थे । पर सुभौम राज-पुत्र के पूर्व-पुण्य के कारण एकाएक उसकी प्रायुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुप्रा और उसके सामने आकर खड़ा रहा । तब उस सुभौम चक्रवति ने उस परशुराम को तत्काल मार डाला और सबको अभयदान दिया और ब्राह्मण वंश का निर्मूलन किया। वह १६ वर्ष की आयु में ही चक्रवर्ती पद को प्राप्त कर छः खण्ड का अधिपति हो गया था। उसकी आयु साठ हजार वर्ष की थी। उसकी ऊंचाई अट्ठाईस हाथ थी। वह सब प्रकार के भोगों को भोग रहा था ।
एक दिन अमृत रसायन नामक एक बाण उसे मिला। उसने वह बाण एक प्राणी को मारा जिससे वह मरकर ज्योतिषी देव हुआ। वहां उसने अपने अवधिज्ञान से जान लिया कि मुझे पूर्व भव में राजा ने मारा था । इसलिए बदला लेने की भावना से वणिक का रूप लेकर आम लेकर पाया और सब को बताने लगा। तब राजा ने उसे बुलाया और वह राजा को साथ लेकर समुन्द्र के पास गया और यह सम्यक्त्वी है ऐसा सोचकर उसे णमोकार मन्त्र लिख कर पोंछने के लिए कहा तब राजा ने वैसा ही किया जिससे वह सम्यक्त्वहीन हो गया। तब उसके ऊपर अनेक उपसर्ग किये और फिर मार डाला जिससे क्रोधभाव से मरा । अतः वह नरक गया और सहस्रबाहु ने लोभवश तिर्यंच गति में जाकर जन्म लिया। वह जमदग्नि के पुत्र पतिराम व परशुराम हिंसा के कारण नरक गए। वह सुभौम भी नरक गया फिर भी उस व्रत के प्रभाव से भविष्य काल में तीर्थंकर होगा।
सारस्वत व्रत कथा (मार्गशीर्ष कृष्णा ६ को) पोष कृष्ण ६ नवमी एकाशन कर दशमी को प्रातः शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणापूर्वक भगवान को नमस्कार करे, अखण्ड