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व्रत कथा कोष
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तब नारद ने उसको आशीर्वाद दिया और कहा “तू द्वारकाधीश की पत्नो हो" तब रुकमणी ने पूछा द्वारकापति कौन है ? ऐसा पूछने पर उन्होंने यादव कुल के इतिहास का वर्णन करते हुए कृष्ण के अच्छे गुणों का वर्णन किया। यह सुनकर रुकमणी के मन में कृष्ण के प्रति आदरभाव जागा, उसने मन में उसी से शादी करने का निश्चय किया।
नारद बहुत चतुर थे दूसरों के मन की बात जल्दी जान जाते थे। उन्होंने रुकमणी के हृदय की बात जान ली। उसका एक सुन्दर चित्र अंकित कर कृष्ण को बताया कृष्ण उसके रूप से पागल हो गया। उसने शादी करने का निश्चय किया । नारद का काम पूर्ण हुआ।
इधर रुकमणी का भाई रुक्मी यह शिशुपाल के पक्ष का था। शिशुपाल बड़ा पराक्रमी राजा था उसने शिशुपाल को रुकमणी देने का निश्चय किया था । रुकमणी को यह बात मालूम हुई उसको अत्यन्त दुःख हुआ। उस दुःख से वह पागल जैसी हो गयी थी । तब उसकी मां ने उसको समझाया और कहा "बालिके व्यर्थ का दुःख मत करो जो विधि में लिखा है वही होगा। नारद का आशीर्वाद बेकार नहीं जायेगा । उसी समय एक अवधिज्ञानी मुनि वहां आये थे । उन्होंने उसे कृष्ण को पट्टराणो होने को कहा था। मुनि के वचन मिथ्या नहीं होते हैं।"
इधर रुकमणी की शादी का मुहूर्त निकाला गया तब रुकमणी ने दूत के साथ कृष्ण को पत्र भेजा, उसने लिखा "माघ शुक्ल अष्टमी को मेरो शादी निश्चित हुई है । आप उसके पहले पायें मैं आपको नगर के बाहर मन्दिर में मिलगी और आपकी राह देखू गी । यदि आप नहीं आये तो मेरी शादी शिशुपाल से हो जायेगी, ऐसा समझना।"
इधर शादी की तैयारी हो गयी, शिशुपाल सपरिवार लग्न-मण्डप में कुडनपुर आया। तब तक कृष्ण भी निश्चित स्थान पर आ गये । रुकमणी भी बताये हुये मन्दिर में गयी, कृष्ण ने कहा-चलो, हम इधर से निकल चलें।
तब रुकमणी रथ में बैठ गयी और कृष्ण ने पांचजन्य नामक शंख फूका उसने इससे शत्रु को जागृत किया। यह गड़बड़ रुकमी और शिशुपाल के कान पर गई तब कृष्ण और शिशुपाल का युद्ध शुरू हो गया । रुकमणी डर गयी उसने कहा शिशुपाल