SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 724
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष [ ६६ वह एक ओर जाकर बैठ गया । तब मनोहर को देखकर कर मुनि महाराज ने पूछाआप कहां से आये हैं ? तब वह बोला मैं अपने घर से आया हूं । तब महाराज ने कहा वह तो मुझे मालूम है पर इसके पहले कहां से प्राये हो वह मालूम है क्या ? तब मनोहर कहने लगा, मुझे वह मालूम नहीं है । वह आप ही मुझे बतावें । तब मुनि महाराज ने उसका पहला भव बताया । यह सुनकर उसको बहुत दुःख हुआ । तब उसने मुनि महाराज के पास सप्त परमस्थान व्रत लिया और विधिपूर्वक पालन किया । वह पुनः धनी हो गया और मरकर स्वर्ग में देवेन्द्र हुआ, वहां पर वह रोज जिन मन्दिर में पूजा करता था नंदीश्वर द्वीप में दर्शन को जाता था वहां पर उसने अपना पूरा समय धर्मध्यान में ही बिताया । वहाँ से च्युत होकर राजन तेरे पेट से जन्म लेगा । यह सुनकर राजा अपने परिवार सहित अपने निवास स्थान पर श्राया । उसके बाद रानी को गर्भ रहा और पुत्र जन्म हुआ, उसका नाम श्रीपाल रखा, राजा ने उसको राज्य देकर स्वयं जिनदीक्षा धारण की । कर्मक्षय करके मोक्ष गया । श्रीपाल ने भी बहुत वर्ष तक प्रानन्द से राज्य किया, यह कथा सुनकर श्रेष्ठी अर्थात नंदिमित्र और नंदिश्री इन दोनों ने यह व्रत ज्ञानसागर महाराज के पास लिया । संकटहररण व्रत यह व्रत वर्ष में तीन बार 2 भाद्रपद, माघ और चैत्र इन तीन महीनों में करना चाहिए इन । महिनों में शुक्ल पक्ष की १३ से शुक्ल पक्ष की १५ तक करना चाहिए । प्रत्येक दिन "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः असि श्रा उसा सर्वशान्ति कुरू कुरू स्वाहा " इस मन्त्र का १०८ बार त्रिकाल जाप करना । ऐसा यह व्रत तीन वर्ष करना चाहिए और फिर उद्यापन करना चाहिए । यदि उद्यापन की शक्ति न हो तो पुनः व्रत करना चाहिए । सकलसौभाग्य व्रत आश्विन शुक्ल १४ को उपवास करना जिन मन्दिर में जाकर भगवान का अभिषेक करना, सब पूजा करने के बाद नवदेवता की पूजा करना, यह पूजा दिन
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy