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व्रत कथा कोष
स्वर्ग में देव हुए । वहां से चयकर उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुए । वहां अधिक समय तक संसार सुख भोगकर अन्त में निर्ग्रन्थ दीक्षा लेकर तपस्या की जिससे वे सब कर्मों को नाशकर मोक्ष पधारे ।
अथ शक्लध्यानप्राप्ति व्रतकथा व्रत विधि :-पहले के समान करें । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख कृ० १४ के दिन एकाशन करें। १५ के दिन उपवास पूजा आराधना व मन्त्र जाप आदि करें । पत्ते मांडे ।
श्वेत पंचमी व्रत प्राषाढ़ फाल्गुण कार्तिक एह, सितपंचमि तें व्रत को लेह । पेंसठ प्रोषध करिये तास, वरष पांच-पांच परिमास ॥ श्वेत पंचमी को व्रत धार, त्रिविध शुद्ध धारों नरनार ।
-कि० सिं० कि० भावार्थ :-यह व्रत पांच वर्ष और पांच महीने में समाप्त होता है । आषाढ़ कार्तिक या फाल्गुन इन तीनों मासों में से किसी एक मास में प्रारम्भ करे। प्रतिमास शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन उपवास करे । इस प्रकार ६५ उपवास पूर्ण होने पर उद्यापन करे । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे ।
षट्कर्म व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला पंचमी के दिन शुद्ध होकर एकासन करे, षष्टि प्रातः शुद्ध हो कर मन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे, पद्मप्रभ भगवान का पंचामृताभिषेक करे, प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे।
____ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं पद्मप्रभतीर्थ कराय कुसुमयक्ष मनोवेगायक्षी सहिताय ममः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मंत्र का १०६ बार जाप करे, एक पाटे पर पांच पान लगाकर ऊपर अष्टद्रव्य रखे ।
देव पूजा गुरु पास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः । बानं चेति गृहस्थानां, षद कर्माणि दिने दिने ॥१॥