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________________ ५६२ ] व्रत कथा कोष ब्राह्मण का रूप बनाया मनोरमा जिस महल में थी उस महल में गया और उसकी रक्षा के लिए दरवाजे पर खड़ा रहा इतने में राजकुमार वहां प्राया । वह महल के अन्दर जाने लगा तो उस ब्राह्मण ने उसे जाने नहीं दिया तब युवराज ने पूछा तुम कौन हो, मुझे महल में क्यों नहीं जाने देते ? तब उसने उत्तर दिया में मनोरमा का सेवक हूं मुझे उनकी आज्ञा है । किसी को भी अन्दर मत आने देना यह उत्तर सुनकर कुमार को गुस्सा आया दोनों के बीच में वहां झगड़ा हुआ, ब्राह्मण ने उसे उठाकर जमीन पर फेंक दिया और उसके हाथ पैर बांधकर चाबुक से मारा तब उसका विलाप सुनकर गांव के सब लोग एकत्रित हो गये । परन्तु मारने वाला किसी को दिखाई नहीं दिया पर राजकुमार को कोई मार ही रहा था । अन्त में ब्राह्मण ने कहा कुमार जाओ । मनोरमा से माफी मांगों यदि उसने माफ कर दिया तो तुम मुक्त हो जाओगे । तब वह राजकुमार मनोरमा के पास गया और माफी मांगने लगा तो मनोरमा सोचने लगी कि ऐसा क्यों हुआ । शायद धर्म ने ही सहायता की होगी इसके सिवाय मेरा कौन होगा । उसने कुमार को माफ किया और ब्राह्मण से कहा इसे मुक्त कर दो । तब देव ने अपना सच्चा रूप प्रकट किया, नम्रतापूर्वक अभिवादन किया और बोला देवी ! तुम्हारे जैसी पतिव्रता नारी और कोई भी नहीं है । इन्द्र की आज्ञा से मैं आपकी रक्षा के लिए आया हूं । अब आप जरा भी चिन्ता न करें, आज से आपकी रक्षा का भार मेरे ऊपर है । इतना कहकर वह चला गया । फिर राजकुमार ने उसे रथ में बैठाकर वन में छोड़ दिया । वन में आकर वह णमोकार मन्त्र का जाप करने लगी । ऐसे कई दिन निकल गये तब एक दिन काशी देश से बनारस के प्रवासी प्रवास करते-करते इस वन में आये । मनोरमा को देखकर उससे पूछा "बाला तू कौन है और किसकी पुत्री है ? और इस बन में अकेली कैसे प्रायी है ?" तब मनोरमा ने अपनी कहानी बतायी । तब धनदत्त ने कहा मैं तेरा मामा धनदत्त हूं, बनारस में रहता हूं, अब तुम हमारे घर चलो, ऐसा कह कर अपने घर ले गये । वहीं वह अपना समय धर्मध्यानपूर्वक बिताने लगी ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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