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________________ व्रत कथा कोष [ ५८६ लो। तब पुरोहित ने कहा श्रेष्ठी में हार बेचने नहीं आया हूं। जो इसकी सही कीमत बतायेगा उसके साथ हमारे श्रेष्ठी की लड़की का विवाह करेंगे । श्रेष्ठी को उसकी बात समझ में नहीं आयी। तब विप्र ने कहा कि श्रेष्ठी ने यह हार मुझे लेकर भेजा है कि जो इसकी सही कीमत करेगा उसी के साथ उसकी लड़की की शादी करायी जायेगी । तब सुखानन्द को बुलाया और ब्राह्मण ने उनके गले में हार पहना दिया । महीपाल ने बड़ा भारी महोत्सव किया और ब्राह्मण को बहुत धन देकर सम्मान किया । ब्राह्मण वापस आया। पहले हुई सब बात उसने श्रेष्ठी को बतायी । मनोरमा की शादी शुभ मुहूर्त में हो गयी। जब वह ससुराल जा रही थी तब उसके पिताजी ने कहा तुझे अच्छा घर मिला है तेरा भाग्य बहुत ही अच्छा है । इसलिये तू अपना जैन धर्म छोड़ना नहीं और तूने जो व्रत लिया है उसका पालन कर शीलव्रत का पालन करना वही संसार में श्रेष्ठ है । शील नहीं है तो संसार में उसका कोई नहीं है पति के अलावा सब तेरे बांधव है ऐसा मान । तू तो गुणी है, सुख से जा और प्रानन्द से संसार कर जिससे दोनों कुल का उद्धार हो । वहां पर वह सुख से रहने लगी पर उसका पति थोड़ा उदासी से रह रहा था तब मनोरमा ने पूछा कि नाथ आप उदास क्यों हैं ? तब सुखानंद ने कहा कि पिताजी की कमाई पर कितने दिन रहूंगा? मुझे भी कुछ व्यापार-धन्धा करना चाहिये । घर बैठकर धन्धा होगा नहीं। दूसरे दिन सुखानन्द पिताजी के पास गया और अपने विचार प्रगट किये । तब पिताजी ने कहा "हे बालक ! अपनी सम्पत्ति कम है क्या तू आनन्द से रह और सुख भोग । पर सुखानन्द ने कहा उसके अलावा मुझे सुख नहीं मिलेगा, कोई भी कर्तव्य करके दिखाने से ही मेरे मन में शान्ति मिलेगी, उद्योग के बिना जीना निरर्थक है। ___ तब पिता ने विचार कर उसे परदेश जाने की प्राज्ञा दी और कहा जाते समय तेरी सुख सुविधा की सब सामग्री लेजा । धन भरपूर ले जा जिससे उस पर तू अपना धंधा कर सके। सुखानन्द ने निकलने की पूरी तैयारी की । निकलते हुए उन्होंने मनोरमा को समझाया वह भी चतुर थी अतः उसने भी समझाया कि स्त्रियों की जात बड़ी
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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