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व्रत कथा कोष
दासी उसी समय धनपाल के घर गयी कुमार के कहे अनुसार उसने हार मांगा तब धनपाल की औरत बोली में हार कैसे दूं सेठ घर पर नहीं है मुझे देने का अधिकार नहीं है, उनको तू बुलाकर ला वे हार ले जायेगे । दासी वापस आयी और उसने सब वृतान्त सुखानन्द को सुना दिया ।
तब सुखानन्द राज दरबार में गया। उसका द्विव्य रूप देखकर राज दरबार के सब लोगों ने स्वागत किया। राजा ने बैठने की जगह दी। सच है पुण्य से क्या नहीं मिलता है।
राजा ने सब हकीकत कुमार से कह सुनायी और न्याय करने के लिए कहा। तब कुमार ने झूठा हार ब्राह्मण से ले लिया और राजा से कहा कि मुझे चार घण्टे का समय दे दीजिए। तब तक दरबार में से किसी को बाहर मत जाने देना, मैं जल्दी ही आता हूं।
उसने उसी दासी को बुलाकर वह हार उसे दिया और कहा "धनपाल की पत्नी के पास जानो और कहो कि यह हार लेकर सच्चा हार दे दो, यदि नहीं दिया तो सेठ को फांसी पर लटकाया जायेगा । वे राज दरबार में बैठे हैं और मुझे यहां भेजा है।"
यह सुन धनपाल की पत्नी ने वह हार रखकर सच्चा हार दे दिया । दासी ने वह हार सुखानन्द को दिया। सुखानन्द ने हार राजा को दिया और सब हकीकत राजा को सुनायी । उसका चातुर्य देखकर राजा उसके ऊपर बहुत प्रसन्न हुअा और बोलाश्रेष्ठीवर्य ! इसको कौन से प्रकार का दण्ड देना चाहिए ?
__ तब उसने कहा हे राजन् ! इस चोर को गधे पर बिठाकर उसे पूरे गांव में घुमाया जाय, इसका पूरा धन राजदरबार में जमा कराया जाय और अन्त में नगर से बाहर निकाल दिया जाये ।
तब राजा ने वैसा ही किया । और राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर उसको हार वापस किया। राजा को धन्यवाद देकर ब्राह्मण बाहर गया। तब ब्राह्मण हार लेकर महीपाल सेठ के पास गया और उस हार की कीमत पूछी, १२ कोटि दीनार बतायी और खंजाची को कहा कि इनको चाहिये जितना धन दो और हार बिकत