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________________ ५८६ ] व्रत कथा कोष १८० पार आते हैं । इसमें देवी, मनुष्यनी, निर्यंचनी व अचेतनी ये चार को पांच इन्द्रिय मन वचन काय और कृतकारित अनुमोदना से परस्पर गुणा करने पर १८० उपवास होते हैं । यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए । पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । व्रत के दिन पंच नमस्कार मन्त्र का जाप या "शील मंडिताय श्री जिनाय नमः " इस मंत्र का जाप करना चाहिए । कथा सब द्वीपों में श्रेष्ठ जम्बूद्वीप उसमें कौशल देश स्वर्ग से भी सुन्दर था । वहां का राजा पद्मसेन उसकी पत्नी कंचनमाला थी। राजा बड़ा ही धर्मप्र ेमी, प्रजाहितन्यायी और चतुर था । तत्पर, यहां पर एक राजा महिपाल रहता था । वह भी धनाढ्य था । उसकी सम्पत्ति ९६ कोटि दीनार की थी । उसकी पत्नी गुणमाला भी गुणी व शील-सम्पन्न थी । उसके पेट से सुखानन्द था । जन्म का दिन श्रेष्ठी ने बड़े उत्सव के साथ मनाया । दिन-दिन वह बढ़ने लगा थोड़े ही दिन में वह सब विद्यानों में पारंगत हुआ । विद्या पूर्ण होने पर घर वापस आया । इस नगरी के पश्चिम में उज्जयनी नामक एक नगर था । वहां नगर श्रेष्ठी महिदत्त उसकी पत्नी शीलवती श्रीमती उसकी लड़की मनोरमा थी । वह बहुत सुन्दर व गुणवान थी । आठवें वर्ष उसे आर्यिका के पास पढ़ने भेजा । थोड़े ही दिन में उसने सब विद्यायें सीख लीं। मनोरमा १६ वर्ष की हो हुई। इसलिए राजा ने ब्राह्मण कोटि कहेगा उसके गले में हार कहा। गयी तो उसके पिताजी को शादी की चिन्ता को एक हार दिया । जो इस हार की कीमत द्वादस डालना, वही मेरी लड़की का पति होगा ऐसा ब्राह्मण हार लेकर निकला । वह नाना देशों में फिरा पर कोई भी हार का सच्चा पारखी मिला नहीं । श्राखिर में वह कौशल देश में विजयंति नगरी में आया। वहां धनपाल श्रेष्ठी के पास गया और हार की कीमत कहने के लिए कहा। जिनदत्त ने चार दिन की अवधि मांगी, ब्राह्मण ने हार उसे दे दिया ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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