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________________ ५८४ ] व्रत कथा कोष मुनिराज के पास जाकर दीक्षित हो गया और घोर तपश्चरण करने लगा, अन्त में समाधिकरण कर स्वर्ग में देव उत्पन्न हो गया । उधर वे दोनों सप्त व्यसनों के कारण पाप कमाकर आर्तध्यान से मरे और नरक में पैदा हो गये, वहां का कष्ट भोगकर और भी अनेक पर्यायों में भ्रमण करने लगे, कुछ काल बाद वे दोनों हेगगिरि पर व्याघ्र हो गये, उस पर्वत की गुफा में जयंधर नामक मुनिराज रहते थे, उन मुनिराज को देखने से वे दोनों व्याघ्र शांत हो गये, मुनिराज के सम्बोधन करने पर उन्होंने अणुव्रतों को ले लिया व्रती बनकर अन्त में समाधि से मरकर दोनों व्याघ्र सौधर्म स्वर्ग में देव हो गये, वहां के सुख भोगकर अन्त में वहां से चयकर पूर्वविदेह के मंगलावति देश में प्रयोध्या नगर है, उस नगर में विमलसेन राजा राज्य करता था, उस राजा की सुमंगलादेवी रानी के गर्भ से वे दोनों देव पैदा हो गये । पुत्रों के बड़े हो जाने पर राज्य भार पुत्रों को देकर राजा ने दीक्षा ग्रहण कर ली, और तपश्चरण कर स्वर्ग को गया । इधर जयसेन राजा को नवनिधि चौदह रत्न उत्पन्न हुये, राजा जयसेन चक्रवर्ती होकर सुख भोगने लगा । एक बार वह चक्रवर्ती राजा मतिसागर केवलि के पास गया और हाथ जोड़कर नमस्कार करता हुआ कहने लगा कि हे भगवान संसार समुद्र से पार होने के लिये कोई ऐसी व्रत विधि कहो जिससे शीघ्र ही संसार से पार उतरा जाय, तब भगवान ने उसको शिवरात्री व्रत की विधि समझाई, चक्रवर्ती ने आनन्द से उस व्रत को स्वीकार किया और नगर में वापस लौट प्राया । नगर में आकर व्रत को अच्छी तरह से पालन किया, अन्त में व्रत का उद्यापन किया, कुछ काल राज्य सुख भोगकर अन्त में संसार शरीर भोगों से विरक्त हुआ और मतिसागर केवलि के पास जाकर जिनदीक्षा ग्रहण करली और घोर तपश्चरण करने लगा, तपस्या के प्रभाव से चार घातिया कर्मों का नाश कर अपद की प्राप्ति की और कुछ काल तक धर्मोपदेश देकर मोक्ष को गये । अथ शरीरपर्याप्तिनिवारण व्रतकथा व्रत विधि - पहले के समान करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख कृ०
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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