________________
व्रत कथा कोष
[५६३
श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे, पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल प्रारती उतारे।
चतारि मंगलं अहंरत मंगलं, सिद्ध मंगलं,
साहु मंगलं, केवलिपण्णतो धम्मो मंगलं, इन चारों मंगलों की पूजा करे, नैवेद्य चढ़ावे । ॐ ह्रीं श्रीं क्ली ऐं चतुर्विशति तीर्थकरेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे । उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, दूसरे दिन सत्पात्रों को दान देकर स्वयं पारणा करे ।
___ इस प्रकार प्रत्येक महिने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की उन्हीं तिथियों में इस व्रत को चार महिने तक करे, कार्तिक अष्टान्हिका में व्रत का उद्यापन करे । उस समय चौबीसी विधान करके महाभिषेक करे । चतुर्विध संघ को दान देवे, चार वायने बनाकर एक देव, एक शास्त्र, एक गुरु को चढ़ाकर एक अपने घर लेकर जावे ।
कथा
इस व्रत को पूर्वभव में भरत व शत्रुघ्न ने पालन किया था, दशरथ के पुत्र होकर जिनदीक्षा लेकर मोक्ष को गये । राजा श्रेणिक, रानी चेलना की कथा पढ़े ।
लक्ष्मीमंगल व्रत कथा आश्विन कृष्ण बारस को एकाशन करके त्रयोदशी के दिन शुद्ध होकर मन्दिर जी में जावे, प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे, सुमतिनाथ तीर्थंकर यक्षयक्षि सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं सुमतिनाथ तीर्थंकराय तुम्बरूयक्ष पुरुषदत्तायक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।