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व्रत कथा कोष
जा सकती है । कषाय और प्रारम्भ परिग्रह को घटाना, विकथानों की चर्चा का त्याग करना एवं धर्म-ध्यान में लीन होना आवश्यक है ।
लब्धिविधान व्रत प्रत्येक वर्ष की भाद्रपद, माघ और चैत्र इन तीन महिनों में सूदि पक्ष में प्रतिपदा से लेकर तृतीया तक अर्थात् तीन दिन यह व्रत करना । तिथि का क्षय हो तो एक दिन पहले शुरू करना । वृद्धि हो तो एक दिन अधिक करना । व्रत की धारणा अमावस्या के दिन व पारणा चतुर्थी को करना । तीनों दिन उपवास करना चाहिए। इस व्रत के दिन नित्य नियम की पूजा करके भ० महावीर की पूजा करनी चाहिये । और "ॐ ह्रीं महावीर स्वामिने नमः" इस मन्त्र का १०८ बार त्रिकाल जाप करना चाहिये । रात को जागरण करके स्तोत्र, गायन भजन और ध्यान करना चाहिये । कषाय प्रारम्भ परिग्रह का त्याग करना चाहिये । विकथा नहीं करनी चाहिये । यह व्रत लगातार तीन वर्ष करना चाहिये ।
__दूसरी विधि :-प्रतिपदा को एकाशन, द्वितीया को उपवास व तृतीया को एकाशन ऐसे तीन वर्ष यह व्रत करना चाहिये । कहीं पर ६ वर्ष करना चाहिये ऐसा लिखा है।
–गोविन्दकृत व्रत निर्णय तीसरी विधि :-प्रतिपदा को उपवास, द्वितीया को उपवास व तृतीया को एकाशन ऐसे ६ वर्ष करना।
- चौथो विधि :-प्रतिपदा को एकाशन, द्वितीया को उपवास, तृतीया को एकाशन करना।
-किसनसिंहकृत क्रिया कोष पांचवीं विधि :-सिर्फ भाद्रपद सुदि १, सुदि २ और सुदि ३ को उपवास करना इस प्रकार तीन वर्ष करना । णमोकार मंत्र का जाप करना।
कथा काशी देश की वाराणसी नगरी में एक राजा विश्वसेन रहता था । वह राजा