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________________ ५५० ] व्रत कथा कोष वहीं जंगल में वह भैंस चराता था, पर दावानल अग्नि के लग जाने से मर गया है। और गंधारी इसीलिए रो रही थी, इस दुःख का कारण यही था । इसी हस्तिनापुर की कथा — उस समय वसुपाल - अपनी रानी वसुमती सहित राज्य करते थे । उसका भाई धनमित्र उसका राज श्रेष्ठी था, उसकी औरत धनमित्रा उसकी लड़की पूतगंधा थी जिसके शरीर से मृतक शरीर के जैसी प्रत्यन्त दुर्गन्ध आती थी, कोई भी मनुष्य उसकी ओर देखता नहीं था । इसी नगर में एक वसुमित्र श्रेष्ठी रहता था वह बहुत ही धनाढ्य था उसकी भार्या वसुमती और उसका पुत्र श्रीसंग था । श्री सेण सप्तव्यसनी था । सदा ही जुम्रा खेलना औौर वेश्या के घर जाना अर्थात् सप्तव्यसनी था । अपने व्यसनों को पूरा करने के लिए वह धीरे-धीरे चोरी करने लगा जिससे लोगों को दुःख होने लगा । एक दिन वह राजश्रेष्ठी के घर चोरी करने गया । वहां यमदंड कोतवाल ने उसको पकड़ लिया और हाथ बांधकर उसे नगर में घुमाया । यह बात वसुमित्र को ज्ञात हुई जिससे उसको बहुत ही दुःख हुआ । वह धनमित्र के पास गया धनमित्र ने उसे कहा मेरी लड़की पूतगंधा के साथ शादी करेगा तो मैं उसे छोड़ देता हूं ऐसा कहा । तब लाचार होकर उसने 'हां' कह दिया, श्रेष्ठी ने पूतगंधा से शादी करा दी पर उसने पूतगंधा से शादी होने तक तो कैसे भी कर समय निकाला पर शादी होने के बाद घर छोड़कर भाग गया । पूतगंधा अपने कर्मों को दोष देती हुई अपने पिता के घर गयी। एक बार प्रार्थिका माताजी उनके घर आहार को प्रायो, उनको उन्होंने श्राहार दिया, उस दिन से उसका रोग अच्छा होता गया । इसी नगर में कीर्तिधर राजा अपनी पत्नी कीर्तिमति के साथ रह रहा था। वहां पिहिताश्रव और श्रमिताश्रव नामक चारणमुनि नगर के बाहर आये । यह बात सुनकर राजा अपने परिवार के साथ दर्शन के लिए गया । मुनिमुख से धर्म-श्रवण कर सम्यक्त्व में दृढ़ता लाया । पूतगंधा भी वहां प्रायी थी उसने अपना पूर्वभव पूछा । अमिताश्रवमुनि महाराज कहने लगे "इस भारतवर्ष में पश्चिम के समुद्र
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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