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________________ व्रत कथा कोष [५१५ यह उपसर्ग निवारण चिन्ह, प्रगटो देश देश मे अन्य । बहुरि कथा जग प्रगटत भई, देश देश परगासी गई ।।२१०।। सब जन मिलकर पूजे पाय, विष्णु कुमार गये निज थान । सकल सुरन को करि सनमान, फेरि जाय दीक्षा प्रादरी ॥२११॥ तब सब मुनि अपनो तप करै, दर्शन ज्ञान चरण पादरै । श्रावण सुदि पूनम तिथि तनी, कथा विचित्र अनुपम बनी ॥२१२॥ वात्सल्य अंग कथा यह कही, कहा कोष में जो कुछ लही। यह विधि भक्ति भविक जो करै, जति व्रती मुनि को प्रादरै ।।२१३॥ वात्सल अंग सर्वथा होय, स्वर्ग मोक्ष फल पावै सोय । श्रवन कथा संपूरन भई, अंग अंग करुनारस भई ॥२१४॥ जो यह कथा सुनै दे कान, सो नर पावै शिवनर थान ॥२१५।। "दोहा" विष्णु कुमार मुनि को बरनो कथा रसाल । सुनि भव्य जन चाव सो कहै विनोदी लाल ॥२१६॥ मुनि उपसर्ग निवारनी कथा सुने जो कोय । करुना उपजै चित्त मे, दिन दिन मंगल होय ॥२१७।। 'इति' "श्री विनोदी लाल कृत रक्षाबन्धन कथा सम्पूर्ण" रोटतीज व्रत भादों सुदी तीज दिन जान, सब प्रारम्भ तजे बुधिवान । तीन वरष प्रोषध चित धार, पीछे उद्यापन कर सार । - कथाकोष भावार्थ :-यह व्रत तीन वर्ष में समाप्त होता है । प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला ३ के दिन उपवास करे और अभिषेकपूर्वक त्रैलोक्य जिनालय विधान करे । 'ओं ह्रीं
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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