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________________ ५१४ ] व्रत कथा कोष कान नाक मुख धूमा करो, मुनि को कंठरुधि सब गयो । ताको सबनि कियो उपचार, प्रासुक जल श्ररु सुरस श्राहार ।। १६६।। सिमई दूध खीर प्रौटाय घीव शर्करा सरस मिलाय । सौ दीनो मुनि श्राहार बहु विधि पुन्य उपजायो सार ||२०० ।। "दोहा " पुरजन जो बाकी रहे, सोच कर मन माहि । धर धर मुनि परगाहियो, अब हम कहा कराय || २०१॥ हम जो प्रतिज्ञा श्रादरी, एं मुनि देय आहार । वार न पार ॥। २०२ ।। डूबे सोच समुन्द्र में, ताको " सोरठा " एक कहयो मुसकाय, चलो विष्णु कुमार ढिंग | जो मुनि देय बताय, सो सब मिलिकर किजिये ।। २०३ ।। " चौपाई " शेष रहे जो नगर के लोग प्राये विष्णु कुमार के जोग । नमस्कार कर बोले बैन, तुम देखत पवित्र भये नैन || २०४ || भौ मुनिराज प्रतिज्ञा हमे मुनि श्राहार जो देवे सबै । तब हम करे अन्न अरूपान, ना तर हमको जिनकी प्रान || २०५ ।। यह संशय हमको अपनो तब तब मुनिवर दीनो उपदेश चित्र उनको भोजन देव सुजान, नमस्कार करि घर को चले, तब उन विधि कीनी घर जाय, श्रो हार मुनिवर लियो सबै भों मुनिवर अब हम क्या करे । प्रभु तुम से प्राय के गुनो ॥ २०६ ॥ साधु करो तुम जाय विशेष । उनको जानो मुनहि समान ।। २०७ ।। श्रानन्द सहित लोग सब भले । फिर पाछे श्राहार कराय ।। २०८ || तब मुनि रक्षक कियो विधान, रक्षा होय तुम्हारे प्राण । मंगल चिन्ह बांधि सब हाथ, सलीनो जगत भयो विख्यात || २०६ ।।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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