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________________ व्रत कथा कोष [ ५०७ तब नप पदम तासु सो कही, ऐसे बचन न बोलो सही। हम सबके दासन के दास, तुम अपने घर करौ निवास ।।१२५।। भीतर ले किन्ही ज्योनार, सुन्दर बसन प्राभूषरण सार । देकर पान बिदा तिन कियो, राजा पदम महा जस लियो ।।१२६।। "दोहा" यह अवसर मुनि संघ सब । हस्तनागपुर जाय । गुरू अकम्पनाचार्य मुनि । बाहर उतरे प्राय ॥१२७।। नगर लोग बन्दन चले । आनन्द हर्ष समेत ।। करत महोत्सव भाव सो । दान भली विधि देत ॥१२८।। "अडिल्ल" यह सुनि करि विप्र मनहि चिन्ता धरे । राजा वन्दन जाय तो हम अब कह रहे । तब बलि आदिक जाय, राय सो यों कही । हमे दक्षिना देहु वचन जो हैं सही ॥१२६।। पदम कहो कर जोर चाहो सो लीजिये । सात दिवस को राज कही बलि दीजिये ।। दियो राज तब राय बलिन दिन सात को। आप अन्तःपुर जाय बैठो रनिवास को ।।१३०।। - "सोरठा" मन्त्रिन पायो राज । सब कुमन्त्र ठानन लयो । कीजै सोई इलाज । जासो ये सब मारिये ।।१३१।। ___"चौपाई" तब बली मन्त्र उपायो प्राय । जो सन्मुख हम मरिहि जाय । हमको भलो न भाषे कोय, महा प्रकीति जगत मे होय ॥१३२।। तात कछक बहानो करो, जाते इन सब ही संघरो। और हमें नहिं लागै दोष, पीछे राजा करे न रोष ।।१३३।।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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