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व्रत कथा कोष
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सरस्वती मूर्ति को व पद्मावती मति को वस्त्राभरणों से सजाकर खोल भरे (गोदभरे) 'चतुर्विध संघ को आहारदानादि देबे, बारह वायना देवे ।
कथा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आर्यखंड है, उस खण्ड में कंभोज नामक देश है, उस देश में भूतिलक नाम का नगर है। वहां पर पहले एक भूपाल नाम का राजा अपनी रानी लक्ष्मीमती के साथ रहता था, उस राजा की और ५०० रानियां थीं, किन्तु उसके कोई पुत्र नहीं था, उसी नगर में एक श्रेष्ठि वृषभ नाम का रहता था, उसकी सेठानी का नाम वृषभदत्ता था, उसको भी संतान नहीं थी, इसी कारण से राजा और राजश्रेष्ठि को निसंतान होने का दुःख होता था, वे चिंता में निमग्न रहते थे।
___ आगे एक समय नगर के उद्यान में श्रीधराचार्य नाम के महामुनी प्राये, उनके संघ में ५०० मुनिराज थे ।
राजा को समाचार प्राप्त होते ही नगरवासी लोगों के साथ अपने परिवार को लेकर उद्यान में गया, वहां तीन प्रदक्षिणापूर्वक नमस्कार करता हुअा, धर्मसभा में बैठ गया, कुछ समय धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा हाथ जोड़कर नमस्कार करता हुआ मुनिराज को कहने लगा कि हे गुरुदेव, हमको सन्तान सुख नहीं है, होगी या नहीं, तब मुनिराज कहने लगे कि राजन तुमको आठ पुत्र होंगे, उस सेठ ने भी पूछा तब राजश्रेष्ठि को कहा कि तुमको पांच पुत्र होंगे, सन्तान प्राप्ति के लिये तुमको फल मंगलवार व्रत करना चाहिये, ऐसा कहकर इस व्रत की विधि कह सुनाई । उन दोनों ने प्रसन्नतापूर्वक व्रत को स्वीकार किया, और नगर में वापस लौट आये, नगर में आकर यथाविधि व्रत का पालन किया, अन्त में उद्यापन किया, फलस्वरूप राजा को पाठ पुत्र और श्रेष्ठि को पांच पुत्र उत्पन्न हुये । सब लोग धर्म के प्रभाव से क्रमेण संसार सुख भोगकर, परम्परा से मोक्ष को जायेंगे।
.. मीनसंक्रमण व्रत कथा मकरसंक्रान्ति व्रत के समान ही सर्व विधि इस व्रत की भी है, मात्र फरक इतना ही है कि फाल्गुन महिने में माने वाले मीनसंक्रमण के दिन व्रत पूजा करे,