SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष एक बार नगर के उद्यान में धर्मधर मुनिश्वर पधारे, राजा को समाचार मालुम होते ही पुरजन परिजन सहित उद्यान में मुनिदर्शन कर धर्मोपदेश सुना । कुछ समय बाद हाथ जोड़कर राजा प्रार्थना करमे लगा कि गुरुदेव ! मेरे सन्तान सुख नहीं है, सो तुत्रोत्पत्ति कब होगी ? तब मुनिराज कहने लगे कि हे राजन ! आप की रानी को मंगलागौरी व्रत का पालन करना चाहिए, ऐसा कहते हुए व्रत विधि बता दी और कहा कि इस व्रत को यथाविधि तुम पालन करो जिससे तुम्हारी इच्छा पूर्ति होगी । राजा रानी ने प्रसन्न होकर सहर्ष व्रत को स्वीकार किया और नगर में वापस लौट आये । नगर में आकर यथाविधि व्रत का पालन किया, अन्त में उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से राजा के यहां दो पुत्रों ने जन्म लिया एक का नाम व्याल दूसरे का नाम महाव्याल, दोनों ही सद्गुणी पुत्र थे, पुत्रों के यौवन अवस्था में आने के बाद राजा को वैराग्य उत्पन्न हो गया, बड़े पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली और तपश्चरण करके कर्मक्षय करते हुये मोक्ष को गये । मोक्षलक्ष्मीनिवास व्रत कथा आषाढ़ महिने की शुक्ल अष्टमी के दिन स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाद्रव्यों को हाथ में लेकर जिनमन्दिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धि करके, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर चन्द्रप्रभु भगवान श्यामयक्ष ( अजित ) ज्वालामालिनीयक्षी सहित मूर्ति स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरू की पूजा करे, यक्षयक्षिणी, क्षेत्रपाल का यथायोग्य सम्मान करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं चन्द्रप्रभ तीर्थंकराय श्रजितयक्ष, श्यामयक्ष, ज्वालामालिनी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, तीर्थंकर चारित्र पढ़े, व्रत कथा भी पढ़े, एक महा अर्घ्य करके मन्दिर को तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल भारती उतारे, महार्घ्य भगवान के सामने चढ़ा देवे, इसी क्रम से चार महिने तक नित्य पूजा करे, मात्र प्रत्येक अष्टमी व चतुर्दशी के दिन पांच प्रकार का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे, एकाशन करे, अंत में कार्तिक शुक्ल पौणिमा के दिन चन्द्रप्रभु तीर्थंकर व यक्षयक्षिणी का महाभिषेक करे, चौबीस प्रकार का पकवान तैयार कर २४ नैवेद्य बनावे, उसमें
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy