________________
४७२ ]
व्रत कथा कोष
विवेचन :-- - सोलह कारण प्रसिद्ध ही है । मेघमाला व्रत भादों सुदि प्रतिपदा से लेकर आश्विन वदि प्रतिपदा तक ३१ दिन तक किया जाता है । व्रत के प्रारम्भ करने के दिन ही जिनालय के प्रांगन में स्थापित करे अथवा कलश को संस्कृत कर उसके ऊपर थाल रखकर थाल में जिनबिंब स्थापित कर महाभिषेक और पूजन करे, श्वेत वस्त्र पहने, श्वेत ही चन्दोवा बांधे, मेघधारा के समान १००८ कलशों से भगवान का अभिषेक करे । पूजापाठ के पश्चात् ॐ ह्रीं पञ्चपरमेष्ठिभ्यो नमः । इस मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिए ।
मेघमाला व्रत में सात उपवास कुल किये जाते हैं और २४ दिन एकाशन करना होता है । तीनों प्रतिपदानों के तीन उपवास, दोनों प्रष्टमियों के दो उपवास, एवं दोनों चतुर्दशियों के दो उपवास, इस प्रकार कुल सात उपवास किये जाते हैं । इस व्रत को पांच वर्ष तक पालन करने के पश्चात् उद्यापन कर दिया जाता है । इस व्रत की समाप्ति प्रतिवर्ष आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को होती है । सोलहकारण व्रत भी प्रतिपदा को समाप्त किया जाता है । परन्तु इतनी विशेषता है कि सोलह कारण का संयम और शील आश्विन कृष्णा प्रतिपदा तक पालन करना पड़ता है तथा पंचमी को ही इस व्रत की पूर्ण समाप्ति समझी जाती है । यद्यपि पूर्ण अभिषेक प्रतिपदा को हो जाता है, परन्तु नाम मात्र के लिए पञ्चमी तक संयम का पालन करना पड़ता है |
1
मेघमाला व्रत
यह व्रत ३१ दिन का है । इसका प्रारम्भ भाद्रपद सुदि प्रतिपदा से होता है । समाप्ति प्राश्विन वदि प्रतिपदा को होती है ।
इस व्रत में सात उपवास और चौबीस एकाशन होते हैं । भाद्रपद सुदि प्रतिपदा, सुदि पंचमी, सुदि अष्टमी, सुदि चतुर्दशी, वदि प्रतिपदा, वदि नवमी और वदि चतुर्दशी इन सात तिथियों में उपवास करना बाकी के दिनों में एकाशन करना ।
भाद्रपद सुदि १२ इस दिन जिनालय के सभामंडप में या प्रांगण में सिंहासन पर स्थापना करके उसके ऊपर जिनबिम्ब स्थापित करना । उसका विधिपूर्वक अभिषेक करना, श्वेत वस्त्र पहनना, श्वेत (सफेद) चांदवा बांधना, १०८ कलशों से अभिषेक करना और पूजा करनी चाहिए। पंचपरमेष्ठी का १०८ बार जाप