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व्रत कथा कोष
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भाद्रपद शुक्ला सप्तमी व्रत को पागम में निर्दोष सप्तमी व्रत कहा जाता है । इस व्रत में भी भगवान पार्श्वनाथ की पूजा करनी चाहिए । सात वर्ष तक इन दोनों व्रतों का अनुष्ठान करना चाहिए । पश्चात् उद्यापन करना चाहिए ।
विवचन :- आगम में श्रावण शुक्ला सप्तमी और भाद्रपद शुक्ला सप्तमी इन दोनों तिथियों के व्रत का विधान मिलता है । श्रावण शुक्ला सप्तमी तिथि के व्रत को मुकुट सप्तमी या शीर्षमुकुट सप्तमी कहा गया है । इस तिथि को व्रत करने वाले को षष्ठी तिथि से ही संयम ग्रहण करना चाहिए । षष्ठी तिथि को प्रातःकाल भगवान की पूजा, अभिषेक करके एकाशन करना चाहिए। मध्यान्हकाल के सामायिक के पश्चात् भगवान की प्रतिमा या गुरु के सामने जाकर संयमपूर्वक व्रत करने का संकल्प करना चाहिए। चारों प्रकार के प्राहार का त्याग सोलह प्रकार के लिए भोजन के समय ही कर देना चाहिए।
सप्तमी को प्रातःकाल सामायिक करने के पश्चात् नित्य क्रियानों से निवृत्त होकर पूजा-पाठ, स्वाध्याय, अभिषेक आदि क्रियाओं को करना चाहिए । पार्श्वनाथ और मुनिसुव्रतनाथ की पूजा करने के उपरान्त जयमाला अपने गले में धारण करना चाहिए । मध्यान्ह में पुनः सामायिक करना चाहिए। अपरान्ह में चिन्तामणी पार्श्वनाथ स्तोत्र का पाठ करना चाहिए । सन्ध्याकाल में सामायिक, अात्मचिन्तन और देवदर्शन आदि क्रियाओं को सम्पन्न करना चाहिए । तीनों बारको सामायिक क्रियाओं के अनन्तर ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथाय नमः, ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथाय नमः" इन दोनों मन्त्रों का जाप करना आवश्यक है । इस मन्त्र का रात भी एक जाप करना चाहिए । अष्टमी को पूजन, अभिषेक और स्वाध्याय के अनन्तर उपर्युक्त मन्त्रों का जाप कर एकाशन करना चाहिए । इस प्रकार सात वर्षों तक मुकुट सप्तमी व्रत किया जाता है, पश्चात् उद्यापन कर व्रत समाप्ति करनी चाहिए।
निर्दोष सप्तमी व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को करना चाहिए । इस व्रत को षष्ठी तिथि से संयम ग्रहण करना चाहिए । इस व्रत की समस्त विधि मुकुटसप्तमो के ही समान है, अन्तर इतना है कि इसमें रात भी जागरण पूर्वक व्यतीत की जाती है अथवा रात के पिछले प्रहर में अलर निद्रा लेनी चाहिए।