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व्रत कथा कोष
सृष्टि का आदि दिन है। कारण छठे काल के अन्त में भरत व ऐरावत खण्ड में प्रलय होगा ऐसा कहा है (देखो त्रिलोकसार गाथा ६४-६७) छठे काल के अन्त में 'सर्वत्र' नामक पवन, पर्वत, वृक्ष, पृथ्वी वगैरह को पूर्ण करता हुआ सब दिशाओं
और सब क्षेत्र में भ्रमण करता है । इस पवन से समस्त जीव मूछित होते हैं। विजयाद्ध गुफा के आश्रय में ७२ युगल को देव बचाकर लेजाकर वहां रखते हैं । बाकी के बचे हुए जीवों का नाश होता है ।
फिर ६ठे काल के अंत में अत्यन्त शीत क्षाररस, विष, भयंकर अग्नि, धूल की क्रम से वर्षा होती है, उसके बाद उत्सपिणी काल पाता है । तब नये काल की शुरु प्रात होती है । इस छठे काल का अंत आषाढ़ सुदी १५ को होता है । नये युग का प्रारम्भ श्रावण वदि १ अभिजित नक्षत्र से होता है । इसलिये आषाढ़ सुदि १५ से बाद में श्रावण सुदि प्रतिपदा से भाद्रपद सुदि ४ तक ४६ दिन होते हैं । इसलिये भाद्रपद सुदि ५ को उत्सपिणी का अन्त और अवसपिणी काल का प्रारम्भ है। इन दोनों कालों का अन्त आषाढ़ सुदि १५ को ही है । यह दिन स्मृति के लिये पर्वक के रूप में मनाया जाता है।
___ इस पर्व की शुरूपात भाद्रपद सुदि ५ से १४ तक होती है यदि कोई तिथि इसके बीच में क्षय हो तो १ दिन पहले से प्रारम्भ करना चाहिये । यह पर्व वर्ष में तीन बार पाता है माघ, चैत्र और भाद्रपद । परन्तु भाद्रपद महिने का पर्व ज्यादा प्रसिद्ध है।
इस व्रत की उत्कृष्ट विधि १० उपवास है । यदि शक्ति न हो तो पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी ये चार दिन के उपवास करना और बचे हुये दिनों का एकाशन करना । यह मध्यम विधि है । और ५ से १४ तक १० दिन एकाशन करना जघन्य विधि है।
भयहरण चतुर्दशी व्रत भय सात प्रकार के हैं । वह नष्ट करने के लिये यह व्रत करना चाहिये।
श्रावण वदि १४ को प्रोषधोपवास करना । इस प्रकार १४ वर्ष करना, व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये, उद्यापन नहीं किया तो व्रत दुगना करना चाहिये।
--गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय