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________________ व्रत कथा कोष [ ४३७ के दिन ॐ ह्रीं पञ्चविंशति दोष रहिताय सम्यग्दर्शनाय नमः । इस मन्त्र का जाप त्रिकाल १०८ बार करना चाहिए । यह जाप उपवास के दिन करना चाहिए। उपवास प्रोषध पूर्वक करे । इसका दूसरा नाम सम्यक्त्व पच्चीसी व्रत है । जिस दिन उपवास करना हो उस दिन चैत्यालय (मन्दिर) के प्रांगन में एक पाटे पर केशर से सुगन्धित द्रव्य से सुसंस्कृत करके एक कुभ रखना चाहिए । ___ उसके ऊपर एक बड़ी थाली रखकर उस पर सम्यग्दर्शन के गुणों से अंकित करना, बीच में पांडुक शिला निकालकर उस पर जिनप्रतिमा विराजमान करना चाहिए । भगवान का अभिषेक कर पूजा करना । सम्भव हो तो ४ महीने रोज जाप करे । उद्यापन करे नहीं तो व्रत दुगना करे। ___ इस व्रत की दो विधि बतायी हैं गोविन्दकृत व्रत निर्णय में दी हैं । उसमें से पहली विधि : दशमी के दस, पञ्चमी के पांच, अष्टमी के पाठ और प्रतिपदा के दो ऐसे २५ उपवास करना चाहिए। दूसरी विधि : दशमी के दस, पूणिमा के पन्द्रह ऐसे २५ उपवास करना । इस व्रत में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह त्याग । प्रत्येक व्रत की पांच पांच भावना है । (१) अहिंसा व्रत को ५ भावना-(१) एषणा समिति (२) आदान निक्षेपण समिति (३) ईर्या समिति (४) मनोगुप्ती (५) अलोकितपान । भोजन भिक्षाकाल, बुभुक्षुकाल व अवग्रह काल ये तीन काल होते हैं । इस महिने में इस गली में इसके घर में भोजन मिलेगा तो करूंगा । ऐसा नियम लेना भोजन भिक्षाकाल है । प्राज भूख लगी है पर भोजन कम लेना (खाना) क्योंकि शरीर की प्रकृति आहार के बिना नहीं चलती है वगैरह विचार करना बुभुक्षितकाल है । मैंने कल यह आहार लिया था आज यह आहार नहीं लूगा इस प्रकार नियम करना अवग्रह काल है । पाहार के समय जाते हुए चार हाथ प्रमाण भूमि ज्यादा तेज भी नहीं व बहुत धीरे भी नहीं ऐसा चलकर जाना एषणा समिति भावना है।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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