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व्रत कथा कोष
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इस प्रकार व्रत करने के बाद उद्यापन करे । उस समय सुमतिनाथ विधान करके महाभिषेक करे । १०८ पुष्प या फल अर्पण करे । चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवे । अभयदान देवे ।
____ यह व्रत पहले भव में सगरचक्रवर्ति के पुत्र भागीरथ राजा ने किया था जिससे वह भागीरथ राजा हुआ । इस भव में भी उसने उस व्रत को किया जिससे उसने राज्य का सुख भोगा और बाद में वैराग्य हो जाने से अपने पुत्र को राज्य देकर जिनदीक्षा ग्रहण की। कैलाश पर्वत के पास गंगा नदी के तीर पर प्रतिमायोग धारण किया जिससे ४ घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान को प्राप्त किया । तब देवी ने आकर उनका अभिषेक किया जिससे वह पानी बहकर गंगानदी में मिल गया इसलिये उसे भागीरथी, ऐसा अभी भी कहते हैं । ४ अघातिया कर्मों का नाश करके वे मोक्ष गये।
भव्यानंद व्रत कथा आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन महिने की कोई भी एक अष्टमी को शुद्ध वस्त्र पहनकर, हाथ में पूजाभिषेक की सामग्री लेकर जिनमन्दिरजी में जावे, मन्दिर की तोन प्रदक्षिणा लगावे, ईर्यापथ शुद्धि करके भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि की प्रतिमा स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, पांच प्रकार का नैवेद्य बनाकर पूजा करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, शास्त्र व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, एक थाली में अहाअर्घ्य लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे । अर्घ्य चढ़ा देवे, उस दिन उपवास रखे । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, दूसरे दिन पारणा करे, इसी क्रम से चार महिने तक पंचमी, अष्टमी व चतुर्दशी की तिथि को पूजा करे, उपवास रखे, आगे आने वाली अष्टान्हिका में उद्यापन करे, उस समय पंचपरमेष्ठी की महाभिषेक पूजा करे, पांच सौभाग्यवति स्त्रियों को वायना देवे, पांच मुनिसंघों को आहारदान देवे, फिर स्वयं पारणा करे ।