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व्रत कथा कोष
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मेरी सेठानी की ऐसी इच्छा है कि आपके मुख से परम सुख को देने वाला कोई व्रत विधान का स्वरूप सुने इसलिये कृपा करके कोई व्रत विधान कहिये, तब गौतम गणधर कहने लगे कि हे भव्यो आप लोग बसरबलगद व्रत को स्वीकार करो जिसके प्रभाव से इस लोक में इन्द्रिय सुख भोगकर परमार्थ सुख को भी भोगोगे ऐसा इस व्रत का प्रभाव है, ऐसा कहकर गौतम स्वामी ने व्रत का विधान कहा, सेठ-सेठानी को व्रत की विधि को सुनकर बहुत आनन्द हुआ ।
सेठानी ने खुशी से व्रत को स्वीकार किया, और नगर में वापस आये, आगे कालानुसार उस जयसेना स्त्री ने यह व्रत पालन करने के लिये प्रारम्भ किया, तब एक दिन जिनमन्दिर से व्रताचरण करके वापस घर को आ रही थी, रास्ते में विजयसेना नामकी स्त्री के साथ भेंट हुई, तब वह कहने लगी कि हे बहन आज आप इधर कहां गई थी ? तब वह कहने लगी, अरी बहन मैं प्राज बसरबलगद व्रताचरण करने के लिये जिनमन्दिर में गई थी, यह सुनकर उसके मन में व्रत की जानकारी करने की आकांक्षा हुई, वह कहने लगी, बहन इस व्रत का फल क्या है और कैसे किया जाता है मैं भी इस व्रत को पालन करूंगी, ऐसा सुनकर उसने पूर्ण व्रत का विधान और फल कह सुनाया, विजयसेना के पास में यह व्रत को लेकर यथाविधि पालन करने लगी, थोड़े ही समय में व्रत के फल से पुत्र, बहुत सा धन वगैरह बहुत ही हो गया, इसके कारण वह भोगामक्त हो गई और अहंकार में आकर व्रत को छोड़ दिया । इस कारण से सब पुत्र छोड़कर अलग २ हो गये, धन संपति सर्व नष्ट हो गई और पतिपत्नी दोनों दूसरे के घर जाकर रहने लगे, इस प्रकार उसकी अत्यंत दुर्दशा हो गई ।
एक दिन चर्या के लिये सुभद्र नाम के मुनि प्रहार के लिये उसके घर पर श्राये, तब उसने योग्य रीति से नवधाभक्ति से आहार दिया और एक पाटे पर मुनिराज को स्थापन कर हाथ जोड़ नमस्कार करती हुई हमारी ऐसी दुर्दशा क्यों हो गई, पुत्र सब छोड़कर चले गये, गये, इसका कारण क्या है, अवधिज्ञान से सर्व वृतांत जानकर मुनिराज कहने लगे कि हे भव्य तुमने अहंकार में आकर व्रत को पूरा न करके अधूरे में ही छोड़ दिया, इस पाप से तुमको यह कष्ट मिला है ।
कहने लगी कि हे स्वामिन
धनधान्यादि
नष्ट हो