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व्रत कथा कोष
नरक गयी । वहाँ का दुःख भोगकर तिर्यंच हुई वहां भी दुःख भोगा फिर कर्मों के उपशम से वह चम्पापुरी में चाण्डाल के घर कन्या हुई । पाप कर्म से मां बाप का छोटेपन में मरण हो गया वह घर घर में भीख मांग कर अपना पेट भरने लगी।
एक दिन चम्पापुर के उद्यान में एक महाज्ञानी मनिश्वर अपने संघ सहित पाये । यह शुभ समाचार सुनते ही राजा अपने परिवार सहित दर्शन को आया । भक्ति से राजा ने तीन प्रदक्षिणा देकर वन्दना की, धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा ने व बहुत ही लोगों ने व्रत लिया और वे सब नगर में वापस गये।
यह सब देखकर नागश्री मनिश्वर की वंदना कर बोली हे दयासिंध ! आपने राजादिक को जो दिया है वह मुझे भी दो । तब मुनिश्वर ने उसको मद्य, माँस, मधु का त्याग कराया जिससे वह मरकर एक श्रेष्ठि के घर सुकुमारी नामक कन्या हुई।
पूर्वकर्म के उदय से उसके शरीर में बहुत ही दुर्गन्ध आती थी। उस नगर में जिनदेव, जिनदत ऐसे दो भाई रहते थे। उसके पिता ने जिनदेव का सुकुमारी से विवाह कराया । पर उसके शरीर से बहुत ही दुर्गन्ध पाने से उसे (जिनदेवको) वैराग्य हो गया और उसने दिगम्बरी दीक्षा ले ली। जिससे सुकुमारी अत्यात दुःखी
एक दिन सूव्रत मुनिश्वर वहां पाये तो उसने पछा मैंने पहले क्या पप किया तब मुनिश्वर ने उसके पहले भव सब बताये । यह सब सुन उसे बड़ा पश्चाताप हना जिससे उसको वैराग्य हो गया और उन मुनिश्वर के पास प्रायिका दीक्षा लेकर तप करने लगी। फिर उसने वह निदान किया कि पहले भव में सोमिल मेरा पति था वही आगे के जन्म में मेरा पति बने जिससे यह भी उसी १६वें स्वर्ग में देवी होकर जन्म लिया।
__इधर वह सोमदत्ता प्रादि पांचों देव स्वर्ग से चयकर पाण्डु राजा के धर्म भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव इस नाम से पांच पुत्र उत्पन्न हुए और स्वर्ग की देवी (पूर्वभव की नागश्री) भी अर्जुन की धर्मपत्नी द्रौपदी हुई । इस प्रकार से इनके पूर्वभव का वृतान्त है।