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व्रत कथा कोष
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एक दिन उस नगर के उद्यान में ३० निर्ग्रन्थ मुनिश्वर अपने संघ सहित प्राये यह शुभ समाचार राजा ने सुना तो तुरन्त ही राजा अपने परिवार सहित दर्शन करने के लिए गया। वहाँ जाकर दर्शन, पूजन प्रदक्षिणा करके नमस्कार कर राजा ने कहा कि परमार्थिक सुख का कारण ऐसा कोई व्रत विधान कहो । तब महाराज ने कहा पंच पांडव व्रत करो वही उचित है यह कहकर उसकी सब विधि बतायी। यह सुन सब बहुत ही खुश हुये। फिर वन्दना कर अपने घर गये । समयानुकूल राजा ने उस व्रत का पालन किया और व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन किया । फिर राजा को वैराग्य उत्पन्न हुआ जिससे अपने विमलवाहन पुत्र को राज्य देकर सोमसेन प्रधान के साथ दीक्षा ली और तपश्चर्या की।
इधर विमलवाहन सुख से राज्य भोगने लगा । एक दिन बसंत ऋतु में क्रीड़ा करने के लिए वन में गये। उस समय सोमदत्त ने अपने दो भाइयों व उसकी व अपनी दोनों स्त्रियों को राजा के साथ भेजा सब चले गये पर नागश्री पीछे रह गयी । वह अपना शृगार कर रही थी।
इतने में शीलभूषण मुनि चर्या के निमित्त वहां माये । तब सोमदत्ता उन्हें पडगाहन कर घर में ले गयी तब तक एक राजदूत ने सोमदत्ता को बुला लिया तब सोमदत्ता ने अपनी नागश्री भाभी को मुनिश्वर को यथाविधि आहार देने को कहा और पाप राज दरबार में चली गयी। फिर इस मुनि ने वन क्रीड़ा करने में विघ्न डाला है ऐसा सोचकर नागश्री ने क्रोधावेश में आकर विषमिश्रित आहार दिया जिससे वे मुनिश्वर तड़पने लगे। पर उन धीर वीर मुनि ने शान्ति से सहन करके समाधि ले ली जिससे वे कर्म का क्षय कर मोक्ष गये।
यह अन्याय देखकर सोमदत्ता प्रादि व उसके बन्धुओं को वैराग्य हो गया जिससे उन्होंने वन में जाकर दीक्षा ली और घोर तपश्चर्या करने लगे । आगे तप के प्रभाव से सोमदत्ता उसके दोनों भाई व दोनों भाभी १६वें स्वर्ग में देव हुए और वहां का सुख भोगने लगी।
___ इधर विमलवाहन ने नागश्री को नगर के बाहर निकाल दिया। उसके शरीर में महान रोग हो गया जिससे बहुत दुर्गन्ध आने लगी बहुत पाप कर्म से वह