SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष .--[ ४०५ परमेष्ठी का पूजन करना, उन उन गुणों का चितवन करना । इस प्रकार पांच वर्ष करना । पूर्ण होने पर उद्यापन करना । यह प्रथम प्रकार है । (२) भाद्रपद सुदी पञ्चमी को प्रोषध उपवास करना । सप्तमी का अल्पहार लेना । अष्टमी को कांजि का आहार लेना और नवमी को उपवास करना, ऐसे पांच वर्ष करना । यह दूसरा प्रकार है।। (३) भाद्रपद सुदी पञ्चमी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी को उपवास करना श्रद्धा से पञ्चपरमेष्ठो का अभिषेक पूजन करना, पंच नमस्कार मन्त्र का १०८ बार जाप करना ऐसे यह व्रत पांच वर्ष करना । यह तीसरा प्रकार है । परमस्थान व्रत यह व्रत श्रावण सुदी ७ को प्रोषधोपवासपूर्वक करना चाहिए। हर श्रावण सुदी ७ को उपवास ऐसा सात वर्ष तक करना चाहिए । इसका फल नंदिमित्र को मिला था। व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । यदि उद्यापन नहीं किया तो पुनः सात वर्ष करना चाहिए। (गोविन्दकविकृत व्रतनिर्णय) पुष्पचतुर्दशी व्रत आषाढ़ सुदी १४ के दिन सर्वारम्भ का त्याग करके उपवास करना । ब्रत के दिन जिनपूजा सिर्फ चरु से ही करनी चाहिए। उसके बाद श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक इन चार महीनों की सुदी १४ को उपवास करना चाहिए। इस प्रकार वर्ष में ५ उपवास करना । यह व्रत क्रम से ५ वर्ष करना चाहिए। (गोविन्दकविकृत व्रतनिर्णय) ..- . --- ... पात्रदान व्रत प्रत्येक सत्पात्र को दान देने का नियम लेना व उसका पालन करना। प्रतीक्षा और द्वारावलोकन करना, यदि पात्र नहीं मिला तो रस त्याग कर खाना । (वत तिथि निर्णय)
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy