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________________ व्रत कथा कोष बाद में कई दिनों के बाद रत्न शेखर के माता पिता दर्शन करने को परिवार सहित सुदर्शन मेरु पर गये। भाग्योदय से दो चारण मुनियों के दर्शन हुए। उनके मुख से धर्मोपदेश सुमकर अपमा भघ सफल किया । और अपना व मदनमंजूषा का पूर्व भव का सम्बन्ध पूछा । तब मुनि बताने लगे। राजन् इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में आर्यखंड है । उस खंड में मृणालपुर नगर का राजा जितारी है । उसकी रानी कनकावती है । उस नगर में एक श्रुतकीर्ति मामक ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी बंधुमती थी। उसकी पुत्री प्रभावति ने बाद में दीक्षा ली। श्रुतकीति पत्नी के साथ वनक्रीडा को गया, वहां उसकी पत्नी बंधुमती सर्पदंश से मृत्यु को प्राप्त हुयी । उसका परिणाम श्रुतक्रीति पर हुआ, वह उदास हो गया यह बात प्रभावति आर्यिका को मालूम हुयी । उसने प्राकर पिताजी को धर्मोपदेश दिया । संसार की असारता को बताया और उनको लेकर अपने गुरु के पास आयी व जिन दीक्षा दिलायी। श्रुतकीर्ति ने शुरु में तो बहुत कठिन तपश्चरण किया पर बाद में वह चारित्र भ्रष्ट हुना और यंत्र मंत्र करने में फस गया । विद्या के जोर से मायावी नगरी बना कर रहने लगे। विषयासक्त हो गये। यह बात प्रभावति को ज्ञात हुयी उसने पिताजी को फिर से उपदेश किया। पर उसका परिणाम अनिष्ट हुआ । पिता ने गुस्से में प्राकर प्रभावति प्रायिका को अपनी विद्या के प्रभाव से घनघोर जंगल में छोड़ दिया। वहां वह (प्रभावती) णमोकार मन्त्र का अखण्ड पाठ करती रही जिसके प्रभाव से वन देवी प्रगट हुयी । उसने पूछा तुम्हें क्या चाहिए ? प्रभावती ने कहा मुझे कैलाश के दर्शन करने हैं वहां मुझे ले चलो। देवी उसको वहां ले गयी, उस दिन भाद्रपद सुदी पंचमी थी। उस दिन पुष्पांजलि व्रत शुरु होता है । वहां स्वर्ग के देव भी पूजा के लिये एकत्रित हुये थे । उन्होंने यह व्रत किया था। यह देख प्रभावती ने भी यह व्रत किया । यथाविधि यह व्रत बड़े आनंद से किया । पांच वर्ष के बाद उस बन देवी ने उसको वापस लाकर मणालपुरी में छोड़ा । वहां उसने स्वयंप्रभ के पास दीक्षा ली । तप किया जिससे उसकी ख्याति
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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