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________________ ३६६ ] व्रत कथा काष अथवा षष्ठी और अष्टमी की पारणा की जाती है । एकान्तर उपवास और पारणा का क्रम चल सके ऐसा करना चाहिए । यह पुष्पाञ्जलि व्रत कर्मरूपी रोग को दूर करने वाला, लौकिक अभ्युदय का प्रदाता एवं परम्पस से मोक्ष लक्ष्मी को प्रदान करने वाला है । विवेचन :-- पुष्पाञ्जलि व्रत की तिथि पहले लिखी जा चुकी है । प्राचार्य ने यहां पर कुछ विशेष बातें इस व्रत में सम्बन्ध में बतलायी हैं । पुष्पाञ्जलि शब्द का अर्थ है कि पुष्पों का समुदाय अर्थात् सुगन्धित, विकसित और कोटाणुरहित पुष्पों से जिनेन्द्र भगवान की पूजा इस व्रत वाले को करनी चाहिए । पहले व्रत विधि में लिखे गये जाप को भी पुष्पों से ही करना चाहिए । यदि पुष्प चढ़ाने से एतराज हो तो पीले चावलों से पूजन तथा लवंगों से जाप करना चाहिए । पांचों दिन पूजन और जाप करना आवश्यक है । इस व्रत का बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है, विधिपूर्वक इसके पालने से केवलज्ञान की प्राप्ति परम्परा से होती है, कर्मरोग दूर होता है तथा नाना प्रकार के लौकिक ऐश्वर्य, धन-धान्यादि विभूतियां प्राप्त होती हैं । इसकी गणना काम्य व्रतों में इसीलिए की गयी है कि इस व्रत को विधिपूर्वक पालकर कोई भी व्यक्ति अपनी लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार की कामनाओं को पूर्ण कर सकता है । पुष्पाञ्जलि व्रत भाद्रपद सुदि पंचमी से सुदि नवमी तक पांच उपवास करना ये पांच दिनों में मेरु की स्थापना कर नित्य पूजा के बाद चौबीस तीर्थंकर की पूजा करनी चाहिए बाद में पंच मेरु की पूजा करनी । रोज अभिषेक करना । "ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धशीतिजिनालयेभ्यो नम:" इस मन्त्र का त्रिकाल जाप प्रतिदिन करना । पंच उपवास करने की शक्ति न हो तो पंचमी का एक उपवास करके बचे हुये दिनों में रस का त्याग कर एकाशन करना चाहिए । रात्रि को जागरण, धर्मध्यान, शास्त्र पढ़ने में समय निकालना चाहिए । यह व्रत लगातार पांच वर्ष करना चाहिए। पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए नहीं तो पुनः व्रत करना चाहिए । पांच ही उपवास करना इसको वृहत् पुष्पांजली व्रत कहते हैं । ऐसा नाम गोविंद कवि ने दिया है ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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