________________
व्रत कथा कोष
[ ३६५
प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। विकथानों को कहने और सुनने का त्याग भी इस व्रत के पालने वाले को करना आवश्यक है। इस व्रत का पालन पांच वर्ष तक करना चाहिए, तत्पश्चात् उद्यापन करके व्रत को समाप्ति कर दी जाती है।
पुष्पाञ्जलि व्रत की विशेष विधि और व्रत का फल पर्वकथितपुष्पाञ्जलिव्रतं पञ्चदिनपर्यन्तं करणीयम् । तत्र केतकीकुसुमादिभिः चतुर्विशतिविकसितसुगन्धितसुमनोभिश्चतुर्विशतिजिनान् पूजयेत् । यथोक्तकुसुमाभावे पूजयेत् पीततन्दुलैः । पञ्चवर्षानन्तरं उद्यापनं कार्यम् । केवलज्ञानसम्प्राप्तिरेतस्य परमं फलम् । तिथिक्षये वा तिथिवृद्धौ पूर्वोक्त एव क्रमः स्मर्तव्य : । पुष्पाञ्जलिवते पञ्चमीषष्ठयोरूपवासः सप्तम्यां पारणा अष्टमो नवम्योरूपवास: दशम्यां पारणा, एकान्तरेण तु तिथिक्षये चादिदिने गृहीते पारणाद्वयं मध्ये कार्यम् । पञ्चम्याष्टम्यां च षष्ठयामष्टम्यां वा यथैकान्तरं स्यात्तथा कार्यम् । एतत् पुष्पाञ्जलिव्रतं कर्मरोगहरं मुक्तिप्रदं च पारम्पर्येण भवति ।
अर्थ :- पहले बताए हुए पुष्पाञ्जलि व्रत को पांच दिन तक करना चाहिए । इस व्रत में केतकी, बेला, चम्पा आदि विकसित और सुगन्धित पुष्पों से चौबीस भगवान की पूजा करनी चाहिए। यदि वास्तविक पुष्प न हों या वास्तविक पुष्पों से पूजन करना उपयुक्त न समझे तो पीले चावलों से भगवान की पूजा करनी चाहिए । पाँच वर्ष के पश्चात् व्रत का उद्यापन कर देना होता है । इस व्रत का फल केवलज्ञान की प्राप्ति होना बताया गया है अर्थात् विधिपूर्वक पुष्पाञ्जलि व्रत के पालने से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है । तिथिक्षय या तिथिवृद्धि होने पर पूर्वोक्त क्रम ही अवगत करना चाहिए । तिथिक्षय में एक दिन पहले से और तिथिवृद्धि में एक दिन अधिक व्रत किया जाता है । पुष्पाञ्जलि व्रत में पञ्चमी और षष्ठी इन दोनों दिनों का उपवास, सप्तमी को पारणा, अष्टमी और नवमी का उपवास तथा दशमी को पारणा की जाती है। एकान्तर उपवास करने वाले को अर्थात् एक दिन उपवास दूसरे दिन पारणा, पुनः उपवास तत्पश्चात् पारणा इस क्रम से उपवास करने वालों को तिथिक्षय होने पर एक दिन पहले से व्रत करने के कारण मध्य में दो पारणाएं करनी चाहिए । पञ्चमी और अष्टमी की पारणा