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________________ ३७४ ] -व्रत कथा कोष मरकर व्रत के पुण्य फल से पांचवें स्वर्ग में देव होकर उत्पन्न हुआ। वहां से चय कर भरत भूमि पर चक्रवर्ती हुआ, षड्खड का राज्य भोगकर दीक्षित हुआ, कर्म काट कर मोक्ष गया । पुराणान्नत्याग व्रत विधि कया आषाढ़ शुवला अष्टमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर जिनमन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईपिथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर भगवान को विराजमान करके पंचामृत अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, जिनवाणी गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल का यथायोग्य सम्मान पूजा करना चाहिये। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं परमब्रह्मणे अनन्तानंतज्ञान शक्तये अर्हत्परमेष्ठिने नमः स्वाहा। इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, देव, शास्त्र, गुरु के आगे चांवल का चार पुज बनाकर नमस्कार करता हुआ, उनकी साक्षी से एक भुक्ति का नियम करना चाहिये, और आज से लेकर चार महिने तक पुराना धान्य (अन्न) नहीं खाऊंगा ऐसा नियम करना चाहिये, व्रत कथा पढ़ना चाहिये, इसी क्रम से आगे कार्तिक शुक्ला पौणिमापर्यंत प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को पूर्वोक्त पूजा करना चाहिये, कार्तिक की पौणिमा के दिन इस व्रत का उद्यापन करना चाहिये, उस समय महाभिषेक पूजा करना, बारह बांस के करण्डों में नाना प्रकार के शुद्ध मिष्ठान्न और गंध, अक्षत, पुष्प, फलादि भरकर ऊपर से बंद कर देवे, वायने तैयार कर देवे, देव को एक, शास्त्र को एक, गुरु को एक, पद्मावती को एक, आर्यिका के आगे एक चढ़ा देवे, गृहस्थाचार्य को एक पण्डित, सौभाग्यवती स्त्री को एक देवे, एक स्वयं अपने घर को लेकर जावे, शक्ति के अनुसार चतुर्विध संघ को दान करे, फिर अपने पारणा करे, प्रत्येक अष्टमी वा चतुर्दशी को उपवास भी करे तो बहुत अच्छा है । कथा अवंति नामक देश में उज्जयनी नगरी में प्रतापसिंह राजा अपनी पद्मावती रानी के साथ में राज्य करता था, एक समय उस नगर के चैत्यालय में कनकश्री
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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