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________________ ३७० ] व्रत कथा कोष चयकर मनुष्य भव धारण कर मुनिदीक्षा धारण की, तपश्चरण करके कर्मों को नष्ट कर मोक्ष को प्राप्त किया । नक्षत्रमाला व्रत गीत का छन्द जु वासर चार अधिक पचास ही, सत्ताइस बीस सात उपासही । त्रिशुद्ध हिं कर विवेकी चाव सों, व्रततें छुटिये विधि दाव सों ॥। अश्विनी नक्षत्र थकी तिहि मध्य एकाशन युत शील मन वच तन माला नक्षत्र सु नाम डिल्ल - -कि. क्रि. को. भावार्थ : - यह व्रत चौवन दिन में समाप्त हो जाता है । प्रथम अश्विनी नक्षत्र के दिन प्रारम्भ करे । प्रथम दिन उपवास, दूसरे दिन पारणा, तीसरे दिन उपवास, चौथे दिन पारणा इस प्रक्रम से २७ उपवास और २७ पारणा करता हुआ क्रम से ५४ दिन पूरे करें । प्रति दिन त्रिकाल णमोकार मन्त्र का जाप्य करे । व्रत समाप्त होने पर उद्यापन करे । नित्यरसी व्रत - लूरण दीत शशि हरि भौम मीठो हरै, घृत बुध गुरु को दही दूध भृगु परिहरें । तैल तजे शनि यहै वरत पांखा गहैं मरयावा जिमि नेम धरे जिमि निरब है || - वर्धमान पुराण भावार्थ :- रविवार को नमक, सोमवार को हरी, मंगलवार को मीठा, बुधवार को घृत, गुरुवार को दही, शुक्रवार को दूध और शनिवार को तेल का त्याग करे । यह व्रत एक वर्षं में समाप्त होता है । शक्तिन्यूनता में पक्ष, मास, दो मास यदि रूप से किया जा सकता है । व्रत धारण की अवधि पूर्ण होने पर उद्यापन करे । ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं नम:' इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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