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प्रत कथा कोष
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तो कहो । तब महाराज जी ने कहा सम्यग्दर्शन के साथ १२ व्रतों का पालन करो। साथ ही उसे धर्मोपदेश दिया। उसने उन व्रतों को धारण किया। आयु के अन्त में समाधिपूर्वक मरण हुआ जिससे वह लक्ष्मीमति कन्या हुई । पूर्वकृत पापकर्म से सुन्दर होते हुये भी अशुभ कर्म करने से लोग उसकी निंदा करते थे।
एक बार उनके उपवन में नंद नामक मुनिश्वर आये थे। यह बात सुन राजा व प्रजा सब दर्शन करने को गई । वंदन आदि करके उनके समीप बैठ धर्मोपदेश सुना । अंत में नन्दा श्रेष्ठी ने पूछा कि मेरी कन्या रूपवती होते हुए भी अशुभ लक्षण वाली क्यों है जिससे सब लोग उसकी निन्दा करते हैं । तब महाराज ने उसके पूर्व भव बताये । अब यदि वह सम्यक्त्वपूर्वक निःशल्याष्टमी व्रत का पालन करे तो पाप से मुक्त होगी और ऐसा कहकर उन्होंने उसे सब विधि बतायी। लक्ष्मीमति ने वह व्रत ग्रहण किया । समयानुकूल विधिवत उसका पालन किया। फिर उसने शीलश्री
आर्यिका के पास दीक्षा ली । समाधिपूर्वक मरण हुआ, १६वें स्वर्ग में देवी हुई। वहां ५५ पल्य की आयु सुख से पूर्ण कर भीष्म राजा की रुकमणी नामक कन्या हुई । अब वह क्रम से स्त्रीलिंग छेद कर मोक्ष पद को प्राप्त करेगी।
इस प्रकार रुकमणी ने अपना भवान्तर सुनकर संसार से वैराग्य होने से राजमति प्रायिका के पास दीक्षा ली । तपश्चर्या करके अंत समय समाधिपूर्वक मरण हमा जिससे वह स्त्रीलिंग छेदकर देव हुआ । वहां की आयु पूर्ण कर मनुष्य होगी। इस प्रकार से यह अपने पाप कर्म को व्रत के द्वारा नष्ट करके मोक्ष सुख को प्राप्त करेगी, यही इस व्रत का माहात्म्य है ।
नवरात्रि व्रत कथा आश्विन शुक्ला एकम को शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, प्रादिनाथ भगवान और उनके यक्षयक्षिणी का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रु त व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं प्रादिनाथ तीर्थंकराय गोमुखयक्ष चक्र श्वरी पक्षी सहिताय नमः स्वाहा।