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________________ व्रत कथा कोष -[ ३२३ लक्षण व्रत का प्रोषध पञ्चमी को होना चाहिए। किन्तु पञ्चमी की पारणा आती है । प्राचार्य इस शंका का समाधन करते हुए कहते हैं कि मध्य में तिथिक्षय होने पर चतुर्थी को उपवास किया जाता है। किन्तु इस चतुर्थी में ही पञ्चमी का अध्यारोप कर लिया जाता है । उत्तम क्षमाधर्म की भावना तथा जाप, जो कि पञ्चमी को किया जाता है, इसी चतुर्थी को कर लिए जाते हैं, अतः चतुर्थी को ही पंचमी मान लिया जाता है। अतएव पंचमी की पारणा में कोई दोष नहीं है । इस प्रकार इस दशलक्षण व्रत का पालन दश वर्ष तक करना चाहिए । इस व्रत का फल मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति है, यों तो इस व्रत से लौकिक ऐश्वर्य और अभ्युदय की प्राप्ति होती है, पर वास्तव में यह व्रत मोक्षलक्ष्मी कालान्तर में देता है। विवेचन :-तिथिक्षय होने पर दशलक्षण व्रत को प्रारम्भ किया जाता है और तिथिवृद्धि होने पर व्रत एक दिन अधिक किया जाता है । अन्तिम तिथि की वृद्धि होने पर अर्थात् दो दिन चतुर्दशी होने पर प्रथम दिन व्रत किया जाता है । यदि दूसरी चतुर्दशी भी छः घटी से अधिक हो तो उस दिन भी व्रत करना होता है । तथा छः घटी प्रमाण से अल्प होने पर पारणा की जाती है । इस व्रत का फल अनुपम होता है । दश धर्म आत्मा के वास्तविक स्वरूप हैं, इनके चिन्तन, मनन और जीवन में उतारने से जीव शीघ्र ही अपने कर्मों को तोड़कर निर्वाण प्राप्त करता है । उत्तम क्षमादि धर्म प्रात्मा की कर्मकालिमाको नष्ट करने में समर्थ है । व्रतोपवास से विषयों की ओर ले जाने वाली इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो जाती है तथा जीव अपने उत्थान का मार्ग प्राप्त कर लेता है। ___दशलाक्षणिक व्रत कथा भाद्रपद शुक्ल मास की पंचमी के दिन व्रतिक स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा अभिषेक का सामान लेकर जिन मंदिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, मण्डप वेदी को सजाकर वेदी के ऊपर पांच रंग के रंगोली से मांडना माण्डे, मण्डल के मध्य में एक मंगलकलश सजा कर रखे, आठों दिशाओं में भी आठ मंगल कलश रखे, मंगल द्रव्य रखे, वेदी को पांच,
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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