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________________ ३२२ । व्रत कथा कोष एवं रसपरित्याग करना चाहिए । स्वादिष्ट भोजन का त्याग करे तथा स्वच्छ और सादे वस्त्र धारण करने चाहिये । इस व्रत का पालन दस वर्ष तक किया जाता है । तिथिक्षय होने पर दशलक्षण व्रत की व्यवस्था और व्रत का फल प्रादितिथिक्षये चतुर्थीतः, मध्यतिथिक्षये चतुर्थीतः अष्टम्यादि तिथिह्रासेऽपि चतुर्थीतः व्रतं कार्यम् । नन्वेकान्तरेण व्रते कते सति अष्टम्यामपि पारणा भवतीति दूषणम्, नैवं वाच्यम्, एकान्तरस्यागमोक्तत्वात् । तिथिक्षयेऽपि पञ्चभ्यां पारणादोष प्रागच्छति, इति न वाच्यं प्रोषधोपवास कथितपञ्चम्याः चतुर्थ्यामेवाध्यारोपात् । एवं दश वर्षपर्यन्तं व्रतं पालनीयम्, ततश्चोद्यापनं भवेत् । एतस्य फलं तु मुक्तिरिति निर्णयः । अर्थ :-दशलक्षण व्रत में आदितिथि पञ्चमीका प्रभाव होने पर चतुर्थी तिथि से व्रतारम्भ, मध्यतिथि का अभाव होने पर चतुर्थी से व्रतारम्भ और अष्टमी तिथि के अनन्तर चतुर्दशी तक किसी भी तिथि का ह्रास होने पर चतुर्थी से ही व्रत का प्रारम्भ किया जाता है । यहां शंका की गयी हैं कि जो एकान्तर उपवास और पारणा करेगा, उसे अष्टमी की पारणा करनी होगी अर्थात् पञ्चमी का उपवास षष्ठी की पारणा, सप्तमी का उपवास अष्टमी की पारणा, नवमी का उपवास दशमी की पारणा आदि एकान्तर उपवास के क्रम से अष्टमी की पारणा आती है, यह दोष है । क्योंकि अष्टमी पर्वतिथि है, इसका उपवास अवश्य करना चाहिए । आचार्य उत्तर देते है कि यहाँ पर्वतिथि का विचार नहीं किया जाता है, आगम में एकान्तर उपवास करने का क्रम बताया गया है, अतः यहां पर एकान्तर उपवास क्रम ही ग्राह्य है । इसलिए अष्टमी को पारणा करने में दोष नहीं है । मध्य में तिथिक्षय होने पर चतुर्थी को उपवास करने का क्रम बताया गया है, अतः यहां पर एकान्तर उपवासक्रम हो ग्राह्य है। इसलिए अष्टमी को पारणा करने में दोष नहीं है। मध्य में तिथिक्षय होने पर चतुर्थी को उपवास किया जाएगा, जिससे एकान्तर उपवास करने वाला पञ्चमी को पारणा करेगा यह भी दोष है । क्योंकि दश
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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