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________________ व्रत कथा कोष [ ३१३ स्त्री विजयावती, विजयसागर पुरोहित उसकी पत्नी विमल मति व उसकी स्त्री विमलगंगा पूरा परिवार सुख से रहता था । एक दिन उन्होंने विमलसागर मुनि के पास यह व्रत लिया, इसका यथाविधि पालन किया, सर्वसुख की प्राप्त किया, अनुक्रम से मोक्ष गए। अथ द्विद्रिय जाति निवारण व्रत कथा विधि :-पहले बताये अनुसार, अन्तर केवल इतना है कि चै० शु० १ के दिन एकाशन, चै० शु० दूज को उपवास । अजितनाथ तीर्थंकर की पूजा, मन्त्र व जाप अजितनाथ भगवान का करना चाहिए। __ दशपर्व व्रत कथा प्राषाढ़ की अष्टान्हिका में शुद्ध होकर जिन मन्दिरजी में जावे, प्रदक्षिणापूर्वक भगवान को नमस्कार करे, चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करके अष्टद्रव्य से पूजा कर, श्रु त व गणधर, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे। ___ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं चतुविंशति तीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा। इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, सत्पात्रों को दान देवे, ब्रह्मचर्य का पालन करे। इस प्रकार आषाढ़ शुक्ल अष्टमी से दस दिन तक पूजा करके एक भुक्ति करे, मागे दस दिन व्रत करके पूजा करे, एक ही वस्तु से एकासन करे, फिर १० दिन पर्यन्त व्रत कर पूजा करे, रस परित्याग करे, फिर दस दिन व्रत पूजा कर व्रत परिसंख्यान करे, आगे दस दिन फिर पूजा व्रत करके फलाहार करे, फिर दस दिन पूजा करके कांजी भोजन करें, फिर १० दिन पूजा करके व्रत कर अर्धपेट भोजन करे, फिर दस दिन पूजा करके व्रत के समय मात्र दस ग्रास भोजन का खावे, फिर १० दिन धारणा पारणा करे, आगे दस दिन उपवास करे, इस विधि से १०० दिन के अन्दर इस व्रत को पूरा करे, अन्त में व्रत का उद्यापन करे, उस समय चतुर्विशति तोर्थंकर की पूजाराधना करे, महाभिषेक करे, दस मुनियों को दान देवे, १० पुस्तक १० बेष्टन (कपड़ा), पिच्छी, कमण्डल, आवश्यक वस्तु देवे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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