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________________ प्रत कथा कोष रिह - लगी कि हे माताजी ! मैं उस मृतक राजकुमार के साथ विवाह गरूंगी, इस धन से भगवान की पूजा वगैरह करूंगी । तब प्रायिका माताजो ने उसको कहा कि जैसी तुम्हारी इच्छा हो वैसा करो, उस समय कर्मो सेवकों के पास जाकर कहने लगी कि मैं राजपुत्र के साथ विवाह करूगी यह धन मेरी मां को दे दो। सेवकों ने सब धन आयिका माताजी को सौंप दिया तथा उस कर्मी को साथ में लेकर राज दरबार में चल दिये। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ, उसो समय विवाह-मण्डप तैयार कर कर्मी के साथ अपने मृतक राजकुमार का विवाह कर दिया। बाद में राजपुत्र की शवयात्रा निकाली गई । उसी समय भयंकर बारिश होने लगी, रास्ते में खूब पानी भरने लगा, रास्ता पानी से बन्द हो गया। तब सब लोग उस राजकुमार के शव को रास्ते में ही छोड़कर अपने रजवाड़े में वापस आ गये । शव के पास किंकर लोगों की स्थापना कर दी थी। मात्र कर्मी अपने मृतक पति के साथ वहां ही रही। ___ उस दिन कर्मी के व्रत का दिन था, उसको याद आया उसने भक्ति से भावपूजा वहीं बैठ कर को । तब उसको दृढभक्ति को देखकर पद्मावतीदेवी का प्रासन कम्पायमान हुमा । तब अवधिज्ञान से उस कन्या की सर्वपरस्थिति जानकर पद्मावती उसी क्षण वहां आई और अपना दिव्य रूप प्रकट कर कहने लगी कि हे बालिके ! तुम्हारे पास कोई द्रव्य नहीं है तो भो तुमने यह झूठी पूजा क्यों प्रारम्भ कर रखी है ? द्रव्य के अभाव में तुमको कुछ भी फल नहीं मिलने वाला है । तब उस कन्या ने पूछा कि हे भगवती ! आप कौन हैं ? आप का परिचय क्या है ? तब पद्मावती देवी कहने लगी कि हे कन्या ! तुम डरो मत मैं पद्मावती देवी हूं तुम्हारी पंच परमेष्ठी भगवान के ऊपर दृढ़भक्ति देखकर मैं यहाँ आई हूं तुम्हारे पर मै प्रसन्न हुई हूं, तुझे जो वर माँगना हो वह मांगले । तब वह कर्मी कहने लगी कि हे देवि ! मेरी द्रव्यलोभ से मत राजपुत्र के साथ शादी हुई । राजपुत्र को प्राज ही प्रातःकाल में सर्प ने काट खाया है और वह मर गया है सो अब आपको जो अच्छा लगे वैसा कर दो, मेरा भविष्य आपके हाथ में है । तब पद्मावतो देवो ने राज कुमार को जिंदा कर दिया और अपने स्थान पर वापस चली
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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