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________________ व्रत कथा कोष [ २३७ बाको बचो उत्तम श्रावक-श्राविकाओं को देवे । नौ प्रकार का पकवान करके भगवान को चढ़ावे, मुनि आर्यिकाओं को आहारदान व यथायोग्य उपकरण देवे, श्रावकश्राविका (उपाध्याय) गृहस्थाचार्य को भोजन करावे, फिर स्वयं भोजन करे। इस प्रकार यह व्रत पांच वर्ष करके उद्यापन के समय पंचपरमेष्ठि की नवीन प्रतिमा बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, नौ पात्र में मिष्टान्न भरकर वायना तैयार करे । वायना भगवान के आगे रखते समय ॐ ह्रीं अहं नमोर्हते पञ्चकल्याणक संपूर्णाय नवकेवललब्धिसमन्विताय स्वाहा-यह मन्त्र पढ़े। ॐ नमोर्हते भगवते सर्व कर्म निर्जरां कुरु कुरु स्वाहा । इस मन्त्र को पढ़कर वायना देवे । चतुर्विध संघ को आहारदान देवे, इस प्रकार व्रत की पूर्ण विधि है। कथा उज्जयिनी नगरी के समीप में एक छोटासा गांव था। वहां बलभद्र नाम का एक जागीरदार (पाटील) रहता था। उसके सात पुत्र थे और उन पुत्रों की सात स्त्रियां थीं। इनके साथ वह प्रानन्द से समय निकाल रहा था। एक दिन एक महामुनिश्वर उस गांव के नगरकोट के समीप में ध्यान करने को खड़े हो गये । उस पाटील (जागीरदार) की यशोमति नाम को छोटी बहु ने अंधेरे में ही गोबर उठाकर कोट के बाहर डाल दिया। वह गोबर मुनिराज के ऊपर गिर पड़ा। उजाला होने पर जागीरदार सौच के लिए बाहर गया, देखा कि हमारी बहु ने मुनिराज के ऊपर भूल से गोबर डाल दिया है । तब उसने गरम पानी लेकर मुनिराज के शरीर को धोया और हाथ जोड़कर क्षमा-याचना करने लगा। मुनिराज का ध्यान छूटने पर हाथ जोड़ नमस्कार करता हुआ कहने लगा कि हे मुने ! मेरी छोटी बहु ने आपके ऊपर अज्ञानपने से गोबर डाल दिया है। उसके लिए मुझे क्षमा करें। तब मुनिराज कहने लगे कि हे भव्य तुमारा कोई दोष नहीं है । हमारे ही पूर्व कर्मों का उदय है । ऐसा कहते हुए आशीर्वाद देकर जंगल को चले गये । इधर यशोमति पाप कर्म के उदय से तीव्र रोग से ग्रसित होकर मर गई
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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