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रखकर पंचपरमेष्ठि की मूर्ति को मण्डल वेदिका के ऊपर कुम्भ के ऊपर स्थापित करे । अष्टद्रव्य से पूजा करे । जिनवाणी, गुरु की पूजा करे । यक्षयक्षिणी, क्षेत्रपाल का यथायोग्य पूजा विधि सत्कार करे | पंच पकवान का नैवेद्य करे ।
चतुष्टकात्मकेभ्यो नव केवललब्धिसमन्वितेभ्यो
ॐ ह्रीं श्रीं श्रनन्त श्रर्हत्परमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा ।
व्रत कथा कोष
ॐ ह्रीं श्रष्टकर्मविनिर्मुक्तेभ्यो भ्रष्टगुण संयुक्तेभ्यः सिद्ध परमेष्ठिभ्यो
नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं प्र पंचेद्रिविषयरहितेभ्यः पंचाचार निरतेभ्यः सूरिपरमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं श्रहं व्रतसमिति गुप्तिसहितेभ्यः कषाय दुरित रहितेभ्यः पाठक परमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं
मूलोत्तर गुणाढ्येभ्यः सर्वसाधु परमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा ।
इन पांच मन्त्रों से पृथक् २ अर्घ्य चढ़ावे, प्रत्येक मन्त्र को १०८ १०८ बार पुष्प लेकर जाप करे । इस प्रकार दिन के चारों ही वेला में पूजा करे । भगवान को एक नारियल सहित श्रर्घ्य -
ॐ ह्रां ह्रीं
यह मन्त्र बोलकर चढ़ा देवे। जिन सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करे । व्रत कथा को पढ़े या सुने, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे ।
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ह्रौं ह्रः श्रसि श्राउसापञ्चपरमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा ।
फिर पहले के समान एक महा अर्घ्य करके मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल आरती उतारे । उस दिन उपवास करे, सारा दिन धर्मध्यान से बितावे | ब्रह्मचर्य का पालन करे । प्रातः काल में जिनपूजा करके नौ बांस की टोकरी में नारियल, फल, पुष्प, गंध, अक्षत, मीठा समोसा ( करंज्या) वगैरह डालकर वायने तैयार करे । इसके अन्दर एक देव के श्रागे, एक पञ्चपरमेष्ठि के आगे, एक जिनवाणी के आगे एक गुरु के आगे चढ़ावे, एक यक्षयक्षिणी के आगे रखे, एक स्वयं लेवे ।