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________________ २१८ ] व्रत कथा कोष ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं श्री पार्श्वनाथ तीर्थ कराय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे और व्रत कथा पढ़े, एक महार्घ्य हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देवे, शक्ति प्रमाण उपवास या एकभुक्ती करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, सत्पात्रों को आहार दान देवे, इसी प्रकार उसी तिथि को प्रत्येक महिने में पूजा करे, इस तरह चार महिने पूर्ण होने पर आगे के नन्दीश्वर पर्व की पूर्णिमा को उद्यापन करे, उस समय नवीन पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को लाकर पंच कल्याणक प्रतिष्ठा करे, अथवा पार्श्वनाथ विधान करके महाअभिषेक करे, नाना प्रकार की मिठाइयों को पचास जगह रखकर चौबीस बार नैवेद्य से पूजा करे, एक थाली में ५४ पान लगाकर गंध, अक्षत, पुष्प, फल, सुपारी, नैवेद्य, एक सोने का पुष्प, एक सोने की सुपारी, नारियल रखकर महार्घ्य बनाकर -- ॐ ह्रीं परम कल्याण परंपरा धारणाय नमः स्वाहा । इस मन्त्र को बोलते हुये, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, पांच वायना अच्छे-अच्छे पदार्थ डालकर तैयार करे, उसमें से एक पार्श्वनाथ, एक जिनवाणी, एक गुरु, एक पद्मावती को चढ़ाकर नमस्कार करके एक स्वयं लेवे, घर पर जाकर सपात्रों को दान देवे, स्वयं पारणा करे, दीन दुःखी लोगों को आवश्यक वस्तु प्रदान करके संतुष्ट करें, इस प्रकार व्रत का विधान है । कथा इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में प्रार्यखंड है, उस प्रार्यखंड में क्षोणीभूषण नाम का एक देश है, उस देश में भूतिलक नाम का एक गांव है, उस गांव में धर्मपाल नाम का राजा राज्य करता था, राजा की धर्मपालिनी रानी थी, दोनों ही सुख से राज्य का उपभोग कर रहे थे उस नगर के उद्यान में एक दिन दिव्यज्ञानी भद्रसागर नाम के महामुनिश्वर आये, राजा को समाचार मिलते ही परिवार सहित दर्शन के लिये गया, तीन प्रदक्षिणा लगाकर नमस्कार करता हुआ धर्मोपदेश सुनने के लिये निकट में बैठ गया ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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