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व्रत कथा कोष
नौ मुनि संघों को पीच्छी, कंमंडलु, पुस्तकादि उपकरण प्रदान करे, आर्यिका माताजी को साड़ी देवे, इस प्रकार इस व्रत की पूर्णविधि है ।
उपसर्गनिवारण व्रतकथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में प्रार्य खंड है, उसमें एक हस्तिनापुर नाम रमणीय नगर है । उसमें एक मेघरथ राजा अपनी पद्मावति रानी के साथ में सुख से राज्य कर रहा था, उस राजा के विष्णुकुमार और पद्मरथ नाम के दो गुणवान पुत्र थे । एक दिन नगर के बाहर सहस्रकूट चैत्यालय के दर्शन करने के लिए सुग्रीव महामुनिश्वर अपने संघ सहित पधारे।
इस वार्ता को वनमाली ने राजा मेघरथ को सुनाया, राजा अपनी रानी व पुत्र नगरवासी सहित मुनि संघ वंदनार्थ सहस्रकूट चैत्यालय में गया और देवभक्ति करके मुनिराज को नमस्कार कर धर्मश्रवरण के लिये धर्मसभा में बैठ गया । धर्मश्रवण कर राजा विनयपूर्वक हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा कि हे संसारतारक मुनिवर ! मुझे सुख प्रदान करने वाला कोई एक व्रत विधान कहो ।
तब मुनिश्वर राजा की विनती को सुनकर कहने लगे कि हे राजन ! आपको उपसर्ग निवारण पार्श्वनाथ व्रत करना चाहिए, ऐसा कहकर व्रत की विधि और विधान कह सुनाया, व्रत का स्वरूप सुनकर राजा मेघरथ ने और उनके छोटे पुत्र विष्णु कुमार ने उस व्रत को ग्रहण कर लिया और सब वापस अपने नगर में आ गये । आगे उन दोनों ने यथाविधि व्रत को पालन करके यथाविधि उद्यापन किया । एक दिन निमित्त पाकर दोनों को वैराग्य उत्पन्न हो गया और श्रुतसागर मुनिश्वर के पास जाकर निर्ग्रन्थ दीक्षा ले ली और घोर तपश्चरण करने लगे । तप के प्रभाव से विष्णुकुमार मुनि को विक्रिया ऋद्धि प्रकट हो गई ।
अवन्ति देश की उज्जयिनी नगरी में श्रीवर्मा नाम का राजा राज्य करता था, राजा के चार मन्त्रो थे, बली, बृहस्पति, प्रहलाद, नमुची, ये चारों ही मन्त्री मिथ्यादृष्टि और दुष्ट प्रकृति के थे । एक दिन उस नगरी के उद्यान में अकंपनाचार्य अपने ७०० मुनियों का संघ लेकर पधारे। नगर निवासी धर्मात्मा लोग दर्शनार्थ जाने लगे । अकंपनाचार्य जी ने यह जानकर कि नगर का राजा और चारों ही मंत्री मिथ्या