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व्रत कथा कोष
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अभिषेक किये जाते हैं। त्रिकाल सामायिक और स्वाध्याय करने चाहिए। रात को जागरणपूर्वक स्तोत्र भजन पढ़ते हुए बिताना चाहिए । पश्चात् नवमी को अभिषेक पूजन करके अतिथि को भोजन कराके स्वयं भोजन करे । चारों प्रकार के संघ को चतुर्विध दान देना चाहिए । यह व्रत १६ वर्ष तक किया जाता है, तत्पश्चात् उद्यापन करने का विधान है । इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
कथा
राजा श्रेणिक व रानी चेलना की कथा पढे ।
अथ एकांतनय व्रत कथा व्रत विधि-पहले के समान सब विधि करे अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ कृष्ण ४ के दिन एकाशन करे, ५ के दिन उपवास करे, पूजा वगैरह ६ के समान करे, णमोकार मन्त्र का जाप ६ बार करे, ६ दम्पतियों को भोजन करावे । वस्त्र आदि दान करे । अन्त में उद्यापन करे, उस समय पंच परमेष्ठी विधान करे ।
कथा पहले गजपुर नगरी में गजन्दत राजा गजावती नाम की अपनी महारानी के साथ रहता था। उसका पुत्र गजकुमार उसकी स्त्री विश्रानुलोभ प्रधानमन्त्री विश्रलोचनी उसकी स्त्री शीशकीर्ति पुरोहित मंगलावती उसकी स्त्री गणवन्ती राजश्रेष्ठी गुणपाल पूरा परिवार सुख से रहता था। एक दिन उन्होंने विद्यासागर मुनि से यह व्रत लिया, इसका यथाविधि पालन किया जिससे स्वर्ग-सुख को प्राप्त किया । अनुक्रम से मोक्ष गए।
अथ एकान्त मिथ्यात्वनिवारण व्रतकथा व्रत विधि :-पहले के समान करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख शु. ११ के दिन एकाशन करे । १२ के दिन उपवास करे । नवदेवता पूजा आराधना मन्त्र जाप करे।
राजा श्रेणिक व रानी चेलना की कथा पढ़े।