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________________ व्रत कथा कोष [ १८३ मुनिसंघ को देखकर राजश्रेष्ठि को ऐसा मालूम हुप्रा मानो ग्राज हमारा जन्म सफल हुआ है। बहुत ही आनन्द से मुनिराज को नमोस्तु करके प्रतिग्रहण करके मुनिराज को आहार के लिए घर पर ले गया और अपनी पत्नी श्रीमती को कहा कि मुनिराज आहार तैयार कर आहार दो । तब श्रीमती ने अपने पति की बात को नहीं सुना श्रौर प्रहार तैयार नहीं किया। तब सेठ ने स्वयं अपने हाथ से आहार तैयार कर मुनिराज को नवधा भक्तिपूर्वक आहार कराया । मुनिराज ने संतुष्ट होकर आशीर्वाद दिया कि अक्षयदानमस्तु, ऐसा कहकर मुनिराज वहां से चले गये । मुनियों का आहार देखकर श्रीमती को बहुत ही क्रोध श्राया और वह लोभाविष्ट हो गई इसलिए उस को अंतराय कर्म का बंध पड़ गया था । वह श्रीमती तुम ही हो, इसी कारण इस भव में तुमको संतान उत्पन्न नहीं हुई । मुनिराज के मुख से यह सब सुनकर वह अतिशय दुःखी हुई और कहने लगी कि हे मुनिश्रेष्ठ ! आप कृपा करके अन्तराय कर्म कटने का और संतान होने का उपाय कहो । उस रानी के वचन सुनकर मुनिराज ने कहा कि हे रानी ! तुम सर्व अन्तराय कर्म नष्ट करने के लिए अक्षय तृतीया व्रत विधिपूर्वक करो, इस व्रत के प्रभाव से तुमको सर्व सुखों की प्राप्ति होगी, मुनिराज ने व्रत की विधि को कहा, और इस व्रत को किसने पालन किया, उसकी कथा कहने लगे । इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध नामक विशाल देश है, उस देश के एक नदी के तट पर एक सहस्रकूट चैत्यालय है, चैत्यालय के दर्शन करने के लिए एक धनिक नामक वैश्य अपनी भार्या सुन्दरी सहित गया, वहां एक कुण्डल मंडीन नाम का विद्याधर अपनी स्त्री मनोरमा के साथ में अक्षय तृतीया व्रत का विधान कर रहे थे, उस समय सेठ की पत्नी सुन्दरीदेवी उस मनोरमा को कहने लगी, कि हे बहन तुम ये क्या कर रही हो, तब मनोरमा कहने लगी कि हे बहन कहती हूं तुम सुनो । इस अवसर्पिणी काल में प्रयोध्या नगर के नाभि राजा अंतिम मनु हुए । उनके मरुदेवि नाम की पट्टरानी थी, उस रानी के गर्भ से प्रादिनाथ तीर्थंकर ने जन्म लिया, देवों ने गर्भकल्याणक और जन्मकल्याणक महोत्सव मनाया। आगे कुछ वर्षों तक अयोध्या पर राज्य कर नीलांजना के नृत्य को देखकर भगवान ने दीक्षा
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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