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________________ व्रत कथा कोष [१८१ इस मन्त्र का १०८ बार सुगन्धित फलों से जाप्य त्रिकाल करें और णमोकार मन्त्र का भी १०८ बार जाप्य करें। उसके बाद व्रत कथा सुनें या पढ़े, फिर एक थाली में नौ पान के ऊपर गंध अक्षत, फूल, फल आदि द्रव्यों को रखकर द्रव्य की थाली हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रक्षिणा देवे, आरती करें, पांच दिन एकभुक्ति करना चाहिए, चतुर्विध संघ को आहारादि देकर स्वयं पारणा करे । इस क्रम से यह व्रत पांच वर्ष करना चाहिए, अन्त में एक नव देवता की नयी प्रतिमा मंगवाकर उस प्रतिमा की धूमधाम से प्रतिष्ठा करावे, व्रत का उद्यापन यथाशक्ति कर, इस प्रकार इस व्रत की विधि है । कथा इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में राजग्रही नाम का नगर है। उस नगर में मेघनाथ महामंडलेश्वर राजा राज्य करते थे। वह राजा कामदेव समान रूपवान और शत्रुओं के लिए मानो एक शस्त्र ही था। उस राजा को पृथ्वी देवी पट्टराणी थी, वह बहुत ही सुन्दर जिन धर्म का पालन करने वाली सम्यक्त्व चूडामरिण थी, इस रानी के साथ वह राजा मेघनाथ आनन्द से राज्य करता था, एक दिन पृथ्वीदेवी अपनी सखियों (दासियों) के साथ अपने सतखडे महल पर बैठकर दिशाबलो. कन कर रही थी, उसी समय, नीचे देखते ही उसको दिखा कि एक उपाध्याय कुछ छोटे २ बालकों को पढ़ाने के लिए लेकर जा रहे थे, उन बालकों को जाते हुए देखकर रानी रोने लगी, दुःखी होने लगो और ऊपर से नीचे उतर कर एक कक्ष में शय्या डर दुःखित अवस्था में निमग्न होकर सो गई । उसी समय राजा मेघनाथ ने उसे देखा और चिन्तामग्न रानी को देखकर प्रेम से राजा ने कहा कि हे प्रिये, आज तुम को कौनसी चिन्ता ने घेर रखा है ? तब रानी ने कहा कि हे प्राणनाथ अपने को पुत्र नहीं होने से आपका यह राज्य वैभव सब व्यर्थ है, ऐसा सुनकर उसको भी दुःख होने लगा । राजा ने मन में संतोष रखते हुए रानी को चार कथा कह सुनाई। उसके बाद एक समय उस नगर के बाहर उद्यान में सिद्ध कूट चैत्यालय को चंदना करने के लिए पूर्व विदेह से सुप्रभ नाम के चारण मुनिश्वर वंदना करने के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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