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________________ १७८ ] व्रत कथा कोष कथा रत्नसंचय नगर में मेघवाहन नामक राजा अपनी स्त्री मेघमालिनी के साथ राज्य करता था। उसके मेघश्याम नामक पुत्र था, उसकी स्त्री का नाम रत्नमालिनी था। उसका चरित्रसेन नामक प्रधान व उसकी स्त्री चारित्रमति नामक थी। उसका शारदानंद पुरोहित व कुसुमावली नामक स्त्री थी । उसी प्रकार सुरेन्द्रदत्त सेठ व उसकी स्त्री गुणमाला थी। एक दिन बाहर उद्यान में सुधर्माचार्य अपने संघ सहित पाये । यह शुभ समाचार सुनते ही राजा नगर के लोगों सहित दर्शन करने वहां गया। वहां पर तोन प्रदक्षिणा लगाकर सब बैठे गए । धर्म श्रवण कर राजा ने कहा-हे भवसिंधुतारक गुरू ! हमें संसार सागर से पार उतारे ऐसा कोई व्रत विधान कहें । तब महाराज जी ने कहा-है भव्य शिरोमणी राजेन्द्र ! तुम्हें अनंतवीर्य यह व्रत करना चाहिए। सब लोगों ने यह व्रत लिया और सब लोग नगर में आये । उन सब ने यह व्रत किया । इस व्रत के प्रताप से उन्होंने स्वर्ग सुख प्राप्त किया । बाद में अनुक्रम से मोक्ष सुख प्राप्त किया। अनंतसुख व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करें । अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ल १२ के दिन एकाशन करे, १३ को उपवास करें। पूजा आदि करें, णमोकार मन्त्र का जाप चार बार करे । चार दम्पतियों को भोजन करावें। कथा उज्जयनी नगरी में श्रीधर नामक राजा अपनी प्रिय प्राणवल्लभा पट्टरानी श्रीमती और उसका प्रिय पुत्र श्रेणिक, उसकी स्त्रो प्रभा । उसी प्रकार राज श्रेष्ठी, मन्त्री, पुरोहित आदि के साथ राज्य करता था। उन्होंने श्रीधराचार्य से अनन्तसुख व्रत लिया, जिससे उन्हें स्वर्ग सुख और अनुक्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति हुई। अमूढदृष्ट्यंग व्रत कथा विधि:-पहले के समान सब विधि को । अन्तर केवल इतना है कि
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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