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________________ व्रत कथा कोष [ १६७ कथा जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत है । उसकी दक्षिण श्रेणी में विश्वरपुर नगर में इन्द्रध्वज नाम के पराक्रमी राजा अपनी इन्द्रायणी पटरानी सहित राज्य करते थे । मन्त्री पुरोहित श्रेष्ठी सेनापति आदि परिवारजन थे । इनके साथ श्रानन्द से काल बिताते थे । एक दिन नगर के बाहर उद्यान में गोवर्धन महामुनि प्राये । यह वनमाल से सुनते ही नगर में प्रानन्दभेरी बजाकर परिजन - पुरजन सहित दर्शन को गये । कुछ देर धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा ने अपने दोनों हाथ जोड़ विनय से एकाद व्रत देने के लिए प्रार्थना की। मुनोश्वर बोले हे भव्यराजचूडामणे ! तुम्हें भ्रष्टविधव्यंतर व्रत करना अधिक उचित है । उस व्रत की विधि बतायो । यह सुन सब को आनन्द हुआ । राजा ब रानी ने यह व्रत ग्रहण किया । नमस्कार करके अपने नगर को लौट गये । समयानुसार दोनों ने यह व्रत यथास्थिति पालन किया । कालांतर में राजा संसार - विषय से विरक्त हो कर पुत्र को राज्य देकर वन को गये । एक दिगम्बर साधु के पास जिनदीक्षा लेकर घोर तपस्या की । समाधिमरण करके स्वर्ग को गये । रानी भी प्रायिका दीक्षा लेकर तप करने लगी । उस व्रत तथा तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेद कर स्वर्ग में देव हुई । ये दोनों प्रागे जाकर मोक्ष में गये । अज्ञान निवाररण व्रत कथा किसी भी प्रष्टान्हिका पर्व में एक पर्व को शुद्ध होकर प्रष्टमी के दिन मन्दिर मैं जावे, प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, शांतिनाथ की प्रतिमा यक्षयक्षिणी सहित का पंचामृताभिषेक करें, प्रष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गरणधर व यक्षयक्षी क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं शांतिनाथाय गरुडयक्ष महामानसीयक्षी सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे । रामोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करें, व्रत कथा पढ़ े, अखण्ड दीप जलावे, एक पूर्ण अर्घ्य विधि पूर्वक चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, सपात्रों को दान देवे, एकाशन करे । इस प्रकार दिन पूजा कर व्रत करे । चार महिने तक प्रतिदिन दुग्धाभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, चार महिने
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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