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व्रत कथा कोष
किया, जिसके प्रभाव से मरण बाद उसी ग्राम में सेठ कुबेरदत्त के यहाँ प्रीतकर नाम का पुत्र हुआ, और वह संसार से उदास होकर जिनदीक्षा ग्रहण कर कर्मनाश कर मोक्ष प्राप्त किया ।
आजारवर्धन ( नत्राम्लवर्धन व्रत )
इक से दश लग प्रोषध करे, बिच बिच इक इक पारणा धरे । फिर दश से इक लग व्रत धार, इक इक बीच पारणा सार । कुल इक शत उपवास कराय, श्ररु उन्नीस
पारणा थाय ।
( सुदृष्टितरंगिणी )
भावार्थ :- यह व्रत ११६ दिन में पूरा होता है, जिसमें १०० उपवास र १६ पारणा होती हैं। किसी भी मास से व्रत प्रारम्भ करे । एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, इस क्रम से १० उपवास तक करे, फिर एक एक घटाकर एक उपवास तक प्रावे । इस प्रकार व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे ।
अंतराय कर्म निवारण व्रत कथा
इस व्रत की विधि भी पूर्व लिखित प्रमाण है, अषाढ शुक्ल सप्तमी को एकासन अष्टमी को उपवास, चंद्रप्रभ तीर्थंकर की आराधना करे, मंत्र जाप्य भी उसी प्रकार करे, कथा भी रानी चेलना की पढ़ े ।
अपूर्व व्रत की विधि
भगवन् ! पूर्वव्रतस्य किं स्वरूपमिति पृष्टे उत्तरमाह श्रूयतां श्रावकोत्तम ! भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे पूर्वादिदिवसत्रये त्रिरात्रं च क्रियते; तत्र भुक्तिरेकान्तरेण वा पञ्चाब्दादि यावत्काय ततश्चोद्यापनम्, पूर्वतिथिक्षये पूर्वा तिथिरमावस्या कार्या एत
तं पाक्षिकं चान्यैः प्रोक्तं तेषामपेक्षया द्वितीया पूर्वाभवति, व्रतं तु चतुर्थीपर्यन्तं अवति । परन्तु नैतन्मतं प्रमाणं, कथं बलात्कारिणां मते चतुर्थी दशलाक्षणिकव्रतस्यादि धारणादिनत्वात् न ग्राह्या; अधिकतिथावछिकमार्गेण व्रतं कार्यम् दाने लाहे भोग उपभोगे वीरियेण संमतेग केवललद्धीउ दंसरणरणारणे चरित्तय इति फलं ज्ञातव्यम् ।
अर्थ :- हे भगवन् ! अपूर्व व्रत का क्या स्वरूप है ? इस प्रकार प्रश्न करने पर, गौतम गणधर ने उत्तर दिया - हे श्रावकोत्तम सुनिये - भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष